पटना से कौशलेन्द्र पाण्डेय
पटना, ११ नवम्बर । नाम–यश की लालसा से सर्वथा दूर, एकांतिक साधना में निमग्न, साहित्य के पर्यावाची शब्द थे, आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव। उनके संपूर्ण व्यक्तित्व से ‘साहित्य‘ टपकता था। साहित्यकार को लेकर एक जो अनूठी कल्पना है, भारतीय वांगमय में कि कोई साहित्यकार चले, तो लगे कि ‘साहित्य‘ चल रहा है। वह कुछ बोले तो लगे कि साहित्य ने कुछ कहा है। वह मुस्कुराए तो लगे कि, साहित्य ने आनंद की अभिव्यक्ति की है, उसी आदर्श कल्पना के साकार रूप थे आचार्य जी। जीवन पर्यन्त, अपनी आयु के ९४वें वर्ष में भी, मृत्यु के कुछ दिन पूर्व तक, जबतक कि उन्होंने बिस्तर नहीं पकड़ लिया, अनवरत लिखते रहे। लगभग ७५ साल की उनकी अद्वितीय साहित्यिक साधना रही। इतनी लम्बी अवधि तक साहित्य की सेवा करने वाला संसार में शायद हीं कोई दूसरा हो। उनके निधन से साहित्य–संसार में जो रिक्ति आई है वह कभी नही भरी जा सकेगी।
यह बातें आज यहाँ संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रं
समारोह का उद्घाटन करते हुए, राष्ट्रीय ख्याति के यशस्वी गीतकार पं बुद्धिनाथ मिश्र ने आचार्य सूरिदेव के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की और काव्यांजलिं देते हुए, अपने इन मधुर गीतों से श्रोताओं का दिल जीत लिया कि, “ तुम बदले, सम्बोधन बदले, लेकिन मन की बात वही है/ जाने क्यों मौसम के पीछे, दिन बदले, पर रात वही है“। एक दूसरे गीत में उन्होंने कहा कि, “नदिया के पार जब दिया टिमटिमाए/ अपनी क़सम मुझे तुम्हारी याद आए।“
अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि आचार्य सूरिदेव, बिहार में, प्राकृत और पाली के एक मात्र अधिकारी विद्वान थे। हिन्दी भाषा में वर्तनी को नियमित करने वाले वे आचार्य नलिन विलोचन शर्मा, राजा राधिका रमन सिंह, रामवृक्ष बेनीपुरी जैसे एक विशिष्ठ शैलीकार थे।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानवर्द्धन मिश्र, डा शंकर प्रसाद, मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष डा रमेश झा, राज कुमार प्रेमी, आचार्य जी की पुत्री अनुपमा नाथ, पुत्र संगम कुमार रंजन, पं मार्कण्डेय शारदेय, डा मनोज गोवर्द्धनपूरी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा उपेन्द्र पाठक, प्रभात कुमार धवन, सुमन कुमार मिश्र, छट्ठू ठाकुर, रूपक शर्मा, विमल कुमार मिश्र, विभा रंजन ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने किया।