कौशलेन्द्र पाण्डेय, पोलिटिकल रिपोर्टर
पटना, २० नवम्बर । महाकाव्य ‘महाशक्ति‘, ‘मेनका‘, ‘रास–रचैया‘, ‘जीवन–संदेश‘, ‘कवि और कविता‘, ‘अवदान‘ जैसी कालजयी कृतियों के महाकवि ब्रजनंदन सहाय ‘मोहन प्रेमयोगी‘ नहीं रहे। सोमवार के तीसरे पहर, ८७ वर्ष की आयु में, उन्होंने पटेल नगर स्थित अपने आवास पर अपना पार्थिव शरीर छोड़ दिया। मंगलवार की सुबह, बाँस घाट पर विद्युत शवदाह–गृह में उनका अग्नि–संस्कार संपन्न हुआ। उनके ज्येष्ठ पुत्र और वरिष्ठ चिकित्सक डा योगेश कृष्ण सहाय ने मुखाग्नि दी।
उनके निधन से संपूर्ण साहित्य और प्रबुद्ध समाज शोक–संतप्त है। निधन की सूचना मिलते हीं बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ, उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, डा कल्याणी कुसुम सिंह, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, बच्चा ठाकुर, आचार्य पाँचु राम, जनार्दन सिंह समेत बड़ी संख्या में साहित्यसेवी उनके आवास पर पहुँचकर उन्हें पुष्पांजलि दी तथा शोक–संतप्त परिवार को ढाँढस बँधाया। उन्होंने अपने पीछे अपनी विधवा शांति सहाय, अपने पुत्र योगेशकृष्ण सहाय, नर्मदेश्वर सहाय, रवि रंजन सहाय, अमरेश्वर सहाय, पुत्री डा प्रतिभा सहाय समेत भरे–पूरे परिवार को शोक–संतप्त छोड़ दिया है।
मंगलवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में एक शोक–सभा भी आयोजित हुई। अपने शोकोदगार में डा सुलभ ने उन्हें इस दौर का एक महान किंतु अलक्षित कवि बताते हुए कहा कि, प्रेमयोगी जी प्रचार से दूर सरस्वती के एकांतिक साधक थे। उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध बनाने में बड़ा योगदान दिया। उनके दो दर्जन से अधिक काव्य–ग्रंथ हिन्दी को दिया गया अमूल्य उपहार है, जिनमे ‘प्रेमगीत‘, ‘जागरी वसुंधरा‘, ‘धरती की पुकार पर‘, ‘आह्वान‘, ‘गतगंधा‘, ‘गीति–काव्य‘ आदि काव्य–ग्रंथों के अतिरिक्त ‘भारतीय मनीषा में ईश्वरवाद‘ और ‘भारतीय प्रजातंत्र एवं प्रशासन‘ जैसे चिंतन–युक्त गद्य ग्रंथ सम्मिलित हैं। वे सौम्यता, सरलता और विनम्रता के मूर्त रूप थे।
डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, प्रेमयोगी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक निष्ठावान अधिकारी के रूप में और एक वरेण्य कवि–साहित्यकार के रूप में आदर के पात्र रहे हैं। उन्होंने एक साहित्यिक पुरुष की भाँति हीं प्रशासनिक सेवा भी की। वे सेवा के कार्य में भी रचनात्मक रहे। भारतीय वांगमय का उन्हें गहरा अध्ययन था, जो उनके साहित्य में लक्षित हुआ है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त ने कहा कि प्रेमयोगी जी संपूर्ण भारत वर्ष में हीं नहीं संपूर्ण विश्व में हिन्दी के विस्तार के पक्षधर थे। इस हेतु निरंतर सक्रिए भी रहे। उन्होंने ‘विश्व हिन्दी संवर्द्धन समिति‘ की भी स्थापना की थी, जिसके माध्यम से हिन्दी के लिए कार्य कर रहे विद्वानों को जोड़ने की चेष्टा की। वे साहित्य सम्मेलन के भी संरक्षक सदस्य थे। कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, आचार्य पाँचु राम, डा जनार्दन सिंह, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, जय प्रकाश पुजारी, डा अमरनाथ प्रसाद, अमित कुमार सिंह, आदि विद्वानों ने अपने शोकोदगार व्यक्त किए। सभा के अंत में दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना की गई।