कौशलेन्द्र पाण्डेय
पटना, २८ नवम्बर। प्रत्येक साहित्यकार समाज का अनिर्वाचित विधायक होता है। वह समाज की विसंगतियों की पहचान कर,न केवल उसके प्रतिकार का स्वर देता है, बल्कि समस्याओं का समाधान भी समाज के विराट सदन में रखता है। साहित्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह केवल समस्याएँ हीं नही गिनाए, उनका समाधान भी बताए। जो समाधान प्रस्तुत नहीं करता वह साहित्य नहीं हो सकता। हरिवंश राय बच्चन जैसे देश के बड़े साहित्यकारों ने समाज की पीड़ा की पहचान की और समस्याओं का समाधान बताया। इसीलिए साहित्यकार राष्ट्र–पुरुष होता है।
यह बातें, गुरुवार को, स्तुत्य कवि डा हरिवंश राय बच्चन की जयंती पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी और कवि प्रकाशनाथ मिश्र के काव्य–संग्रह ‘हे राम ! तुम कब आओगे?’ का लोकार्पण करती हुईं, गोवा की पूर्व राज्यपाल और विदुषी साहित्यकार महीयसी डा मृदुला सिन्हा ने कही। डा सिन्हा ने कहा कि,साहित्यकार कोई छोटा बड़ा नहीं होता। यदि किसी ने एक पंक्ति भी ऐसी लिख दी, जिससे समाज का मार्ग–दर्शन होता है, वह एक पंक्ति कवि को महान बना देती है।
डा सिन्हा ने कहा कि, राम कहीं नहीं गए ! हमने उन्हें जाने हीं नही दिया। भारतीय संस्कृति की यह विशेषता है कि, हम ने राम, कृष्ण, शिव को जाने हीं नहीं दिया। ये नाम हमारी लोक–संस्कृति में रमे हुए हैं। हम उठते–बैठते इन्हें स्मरण करते हैं। आवश्यकता है कि हम उन्हें अपने आचरण में उतारें। उन्होंने कहा कि, कठोर समझी जाने वाली पुलिस की सेवा में रहकर भी पुस्तक के कवि ने संवेदन शीलता बचाए रखी है, यह बहुत बड़ी बात है। इसके अभाव में कविता नहीं की जा सकती, समाज का बड़ा काम नहीं किया जा सकता।
समारोह के विशिष्ट अतिथि और वरिष्ठ कवि राम उपदेश सिंह ‘विदेह‘ ने कहा कि, बच्चन जी की पंक्तियाँ पाठकों के मन को खींचती हैं। उन्होंने उम्र खैय्याम से प्रेरणा पाई थी। उनकी रचनाओं में भारत का जीवन–दर्शन दिखाई देता है।
वरिष्ठ कथाकार तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी जियालाल आर्य ने कहा कि, लोकार्पित पुस्तक के कवि अपनी रचनाओं में यह सिद्ध करते हैं कि, ये काव्य–प्रतिभा से संपन्न हैं और इनसे साहित्य बड़ी अपेक्षा कर सकता है।
लोकार्पित काव्य–संग्रह के कवि प्रकाशनाथ मिश्र ने कृतज्ञता ज्ञापित करने के क्रम में पुस्तक की शीर्षक–कविता ‘हे राम ! तुम कब आओगे?’ समेत अन्य प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, यद्यपि कि लोकार्पित काव्य–संग्रह, कवि की प्रथम काव्य–पुस्तक है, तथापि इसमें कवि की बौद्धिक–क्षमता, जीवन के विविध संदर्भों में इनकी परिपक्व दृष्टि, गंभीर चिंतन और काव्य–प्रतिभा का परिचय मिलता है। कवि ने समाज की पीड़ा और कठोर वास्तविकताओं को उजागर करने के साथ परिस्थितियों को बदलने और समाज के गुणात्मक उन्नयन की अपनी सारस्वत अभिलाषा को भी शब्द दिए हैं। कवि के मानस में समाज की गहरी चिंता है और वह समझता है कि एक बार फिर राम का अवतरण आवश्यक है।
मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन‘, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह तथा डा जंग बहादुर पाण्डेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया। मंच का संचालन डा शंकर प्रसाद ने किया। इस अवसर पर, वरिष्ठ कवयित्री डा भावना शेखर, बच्चा ठाकुर, डा शालिनी पाण्डेय, कुमार अनुपम, डा सुलक्ष्मी कुमारी, कवि घनश्याम, डा सीमा यादव, डा अर्चना त्रिपाठी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा सुधा सिन्हा, कृष्ण रंजन सिंह, डा नागेश्वर यादव, विभा रानी श्रीवास्तव, श्रीकांत सत्यदर्शी, अर्चना सिन्हा, प्रतिमा सिंह, अमियनाथ चटर्जी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा पुष्पा गुप्ता, माधुरी भट्ट, डा मीना कुमारी परिहार, चंदा मिश्र, ज्ञानेश्वर शर्मा, प्रेमलता सिंह,प्रवीर पंकज, राज किशोर ‘वत्स‘ समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।