पटना, कौशलेन्द्र पाण्डेय
, ६ दिसम्बर। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पूर्व प्रधान मंत्री और यशस्वी कवि पं रामचंद्र भारद्वाज कोमल भावनाओं के अत्यंत लोकप्रिय और प्रभावशाली कवि थे। अपनी कविताओं को वो बड़े हीं प्रभावशाली ढंग से पढ़ा करते थे। जीवन में उत्साह का सृजन करने वाली उनकी कविताएँ श्रोताओं के हृदय को स्पर्श करती थी। साहित्य के क्षेत्र से उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था। सम्मेलन के प्रधान मंत्री के रूप में उनके कार्यों को व्यापक सराहना मिली।
यह बातें आज यहाँ पं भारद्वाज की जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और कवि –सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, उनकी काव्य–कल्पनाएँ मुग्ध करती हैं। अपनी रचनाओं में उन्होंने बहुत हीं लुभावने वाले शब्दों का प्रयोग किया। वे उस समय के कवि थे, जब हिन्दी के विस्तृत आसमान पर बिहार के अनेक नक्षत्र दैदिप्यमान थे। उन विराट नक्षत्रों के बीच उनकी प्रभा कभी मलिन नहीं पड़ी।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि, भारद्वाज जी अपने समय के महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक थे। साहित्य के साथ राजनीति में भी उनकी दख़ल थी। किंतु उन्होंने राजनीति को कभी भी साहित्य पर प्रभावी नहीं होने दिया। उन्होंने राजनीति उतनी हीं की, जितनी साहित्य ने अनुमति दी।
समारोह का उद्घाटन मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन‘ ने किया। बिहार राज्य अभिलेख़ागार के पूर्व निदेशक डा तारा शरण सिन्हा, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, वरिष्ठ कवि बाबूलाल मधुकर, श्रीकांत सत्यदर्शी तथा वीरेंद्र कुमार यादवने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि–गोष्ठी का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी–वंदना से किया। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘ ने कहा कि, “पुल से हीं पट जाए न धरती, लेने को फिर साँस न हो/ सिर के ऊपर छत हीं छत हो, कहीं खुला आकाश न हो/ मधुशाला में मधु का प्याला है, पीने की बात कहाँ/ छूना भी ‘करुणेश‘ मना है,अगर तड़पती प्यास न हो” । डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल को तरन्नुम से पढ़ते हुए कहा कि, “तलाश क्या थी तेरी, ज़ुस्तजु तेरी क्या है/पलट के देख ज़रा अब ये ज़िंदगी क्या है“।
वरिष्ठ शायर आरपी घायल का कहना था कि, “जिस इंसान को बेख़ुदी से प्यार होता है/ इसी संसार में उसका अलग संसार होता है“। कवयित्री भावना शेखर ने अपने ख़याल का इज़हार यों किया कि, “मुझे माँगने हैं कुछ क़तरे आँसू, बचपन की आँखों से / जो सहमे–सहमे ढूँढते हैं/ खिलखिलाहटें और एक रैन–वसेरा“। नीलांशु रंजन का कहना था कि, “मैंने तुमसे फ़क़त एक शाम माँगी थी/ सुकून के साथ चंद लमहात तुम्हारे साथ गुज़ारने के लिए“।
शायरा तलत परवीन ने ये गुज़ारिश की कि, “दिल में चुपचाप समा जाओ मेरे/ ये न पूछो कि सहुलत क्या है?”।
वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, मधुरेश नारायण, डा मेहता नहेंद्र सिंह, व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय, राज कुमार प्रेमी, जय प्रकाश पुजारी,शायरा मासूमा खातून, डा रमाकान्त पाण्डेय, माधुरी भट्ट, पा गणेश झा, छट्ठू ठाकुर, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, यशोदा शर्मा, डा मोईन गिरीडिहवी, विश्वनाथ वर्मा, हरेंद्र त्रिपाठी, गीता सिन्हा, सच्चिदानंद सिन्हा, श्रीकांत व्यास, अरविंद कुमार सिंह, कन्हैया सिंह ‘कान्हा‘, अभिलाषा कुमारी, कुमार अनुपम , डा एम के मधु, सुनील कुमार, रश्मि गुप्ता, नीता सिन्हा आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।