कौशलेन्द्र पाण्डेय,
पटना, ८ दिसम्बर । डा दीनानाथ शरण हिन्दी के कुछ उन थोड़े से मनीषी साहित्यकारों में थे, जो यश की कामना से दूर, जीवन पर्यन्त साहित्य और पत्रकारिता की एकांतिक सेवा करते रहे। वे कवि का एक विराट हृदय रखते थे। मनुष्यता और जीवन–मूल्यों की कविताएँ रचते रहे। एक सजग कवि के रूप में उन्होंने पीड़ितों को स्वर दिए तथा शोषण तथा पाखंड के विरुद्ध कविता को हथियार बनाया।
यह बातें आज यहाँ, साहित्य सम्मेलन तथा चित्रगुप्त सामाजिक संस्थान, पटना सिटी के संयुक्त तत्त्वावधान में, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित सम्मान–समारोह तथा कवि –सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, शरण जी की ख्याति उनके द्वारा प्रणीत आलोचना–ग्रंथ ‘हिन्दी काव्य में छायावाद‘ से हुई। वे साहित्य के इस काल–खंड के विशेषज्ञ तथा नेपाली साहित्य के इतिहास के लेखक के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने साहित्य की प्रायः सभी विधाओं; कविता, कहानी, संस्मरण,
इस अवसर पर डा सुलभ ने, मनीषी विद्वान और साहित्यकार प्रो मंगलमूर्ति को ‘डा दीनानाथ शरण स्मृति सम्मान‘ से विभूषित किया। सम्मान–स्वरूप उन्हें वंदन–वस्त्र, स्मृति–चिन्ह और सम्मान–पत्र प्रदान किया गया।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि, प्रो मंगलमूर्ति, एक महान और विद्वान पिता आचार्य शिवपूजन सहाय के पुत्र होने के साथ–साथ स्वयं एक विद्वान प्राध्यापक और साहित्यकार हैं। यह सम्मान एक बहुत हीं उपयुक्त व्यक्ति को प्रदान किया गया है। उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा को और बल दिए जाने की आवश्यकता है। इसी भाषा ने हमें आज़ादी दिलाई। सबकी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर हिन्दी के विकास में विद्वानों को आगे आना चाहिए। हिन्दी के विद्वानों का यह परम दायित्व है।