पटना-कौशलेन्द्र पाण्डेय,
१७ दिसम्बर। संस्कृत–साहित्य में गहरी अभिरुचि रखने वाली विदुषी डा सुषमा कुमारी मंगल भाव की कवयित्री हैं। इनका स्वर मंगलाचरण का है। इनकी कविताएँ, पीड़ित मन के आँसू पोंछकर उनके हृदय में एक नए उत्साह का सृजन करती हैं। वैदिक साहित्य से प्रभावित इस कवयित्री में रचना–धर्मिता का वह विशिष्ट गुण है, जिससे लेखन–कर्म सार्थक बनता है और जिसमें परितोष का आनंद छिपा होता है।
यह बातें, मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, जे एन यू में अध्यापन कार्य से जुड़ी चर्चित कवयित्री डा सुषमा कुमारी के दो काव्य–संग्रहों ‘नवोन्मेष‘ तथा
पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त वरिष्ठ अधिकारी और बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष विजय प्रकाश ने कहा कि, काव्य–कर्म में आज एक व्यापक परिवर्तन आया है। पहले जब स्तुतियों की कविताएँ लिखी जाती थीं, अब हाशिए पर खड़े लोगों और शोषितों के पक्ष में कविता खड़ी हो रही है।लोकार्पित काव्य–संग्रहों में कवयित्री ने कविता के बदलाव को रेखांकित किया है और वह पीड़ितों के पक्ष में खड़ी दिखाई देती हैं।
वरिष्ठ कथाकार तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी जियालाल आर्य ने कहा कि, लोकार्पित पुस्तक में संस्कृत, संस्कृति और सभ्यता को शब्द मिले है। कवयित्री में बड़ी कविता हीं नहीं, महाकाव्य के सृजन की क्षमता भी दिखाई देती है। मगध विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन‘, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, डा मधु वर्मा तथा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, सुषमा जी बहुमुखी प्रतिभा की साहित्यकार हैं। इनकी ६ काव्य–पुस्तकों के साथ कथा–साहित्य एवं समीक्षा–साहित्य सहित ९ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये सभी ग्रंथ स्तरीय और साहित्य–कौशल से युक्त हैं। काव्य–कर्म के जितने गुण होते हैं, उनमें से प्रायः सभी गुण कवयित्री में दिखता है। कविता के संदर्भ में जो विचार अपेक्षित है, वह सब कवयित्री में है।
अपने कृतज्ञता–ज्ञापन के क्रम में लोकार्पित पुस्तकों की कवयित्री डा सुषमा ने ‘हाशिये पर खड़े लोग‘ शीर्षक कविता‘ समेत अन्य प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया।
इस अवसर पर, आयोजित कवि–सम्मेलन का आरंभ वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी की वाणी–वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘ ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि, “पाँव रस्तों से रिश्ते निभाते रहे/ ज़िंदगी में कई मोड़ आते रहे/ यूँ खाबों ने फिर–फिर बुझाया तो क्या/ हम चरणों को फ़िर–फिर जलाते रहे“। डा शंकर प्रसाद का कहना था कि, “आँखों में जब अश्कों के तूफ़ान मचलते थे/ हमने वो ज़माना भी हँस– हँस के गुज़ारा है।“
वरिष्ठ कवि शायर आरपी घायल, अमियनाथ चटर्जी, डा मेहता नगेंद्र सिंह, सुनील दूबे, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘, कुमार अनुपम, डा शालिनी पाण्डेय, नम्रता मिश्र, डा सुलक्ष्मी कुमारी, कवि घनश्याम, डा अर्चना त्रिपाठी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा पुष्पा गुप्ता, डा सविता मिश्र ‘मागधी‘, इन्दु उपाध्याय, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, सिद्धेश्वर, शकुं
इस अवसर, कवयित्री के माता–पिता उषा शर्मा और नर्मदेश्वर शर्मा, पति संजय कुमार तिवारी, कलावती देवी, श्रीकांत सत्यदर्शी, श्याम बिहारी प्रभाकर, रवि घोष, राज किशोर ‘वत्स‘ समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।