कौशलेन्द्र पाण्डेय,
पटना, २६ दिसम्बर। वरिष्ठ पत्रकार, कवि और कलाकार हृदय नारायण झा बहुगुण प्रतिभा संपन्न सम्मान्य पुरुष हैं। योग और योग–साहित्य पर भी श्री झा का अत्यंत मूल्यवान कार्य हुआ है। नित्य योगाभ्यासी श्री झा ने योग के आचार्य के रूप में हज़ारों युवाओं को प्रशिक्षित और भारतीय योग–परंपरा में उत्प्रेरित किया है। ऐसे गुणी मनीषी का सम्मान करना,समाज के दायित्वों में सम्मिलित है, क्योंकि जो समाज अपने बीच के गुणी जनों का सम्मान नहीं करता, वह पतनोन्मुख हो जाता है। श्रेष्ठजनों को सम्मान देने वाला समाज हीं उत्तरोत्तर प्रगति करता है।
यह विचार, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, श्री झा के ६०वें जन्म–दिवस पर आयोजित उत्सव और सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, हृदय जी का हृदय इनके नाम के अनुसार हीं पवित्र और भारतीय परंपरा के संवर्द्धन में संलिप्त रहा है। संस्कृत अकादमी, बिहार में सहायक–निदेशक के रूप में भी इनके कार्यों को पर्याप्त सराहना मिल रही है। इसके पूर्व डा सुलभ ने पुष्पहार, पुष्प–गुच्छ और अंग–वस्त्रम देकर श्री झा का अबिनंदन किया।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने कहा कि, पत्रकारिता एक सामाजिक विज्ञान है। हृदय जी ने पत्रकारिता के माध्यम से हिन्दी भाषा, साहित्य और समाज की बड़ी सेवा की है। इन्होंने पत्रकारिता की पूरी सच्चाई के साथ सेवा की है तथा लेखन–विधा को समृद्ध किया है।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, हृदय जी संस्कृत के भी एक बड़े विद्वान हैं। ये हिन्दी, मैथिली और संस्कृत, तीनों हीं भाषाओं की निष्ठापूर्वक सेवा दे रहे हैं। हमें इनके सभी सद्गुणों का लाभ उठाना चाहिए।
बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष–सह–निदेशक डा दिनेश चंद्र झा, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कबीर बाग़ आश्रम के मठाधीश महंथ मनभंग दास शास्त्री, डा ध्रुब कुमार, प्रभात धवन, डा बी एन विश्वकर्मा, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, राज कुमार प्रेमी, डा शकुंतला मिश्र, डा मुकेश कुमार ओझा, चितरंजन भारती, श्रीकांत व्यास, डा एच पी सिंह, विजय तिवारी, डा रंजन कुमार, सच्चिदानंद सिन्हा, रवींद्र सिंह आदि ने भी अपनी शुभाशंसाए प्रकट की।
इस अवसर पर हृदय नारायण झा ने योग के विभिन्न आसनों का प्रशिक्षण भी दिया। उनकी शिष्या कविता कुमारी ने आसनों की जीवंत प्रस्तुति दी। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।