कौशलेन्द्र पाण्डेय
पटना, २ जनवरी। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन नए वर्ष के स्वागत में, गुरुवार को गीत–ग़ज़लों की यादगार शाम लेकर आया। अन्तर्राष्ट्रीय काव्य–मंचों के अनेक दिग्गज कवियों–शायरों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को शेरों–सुख़न और गीत की एक नई दुनिया में ही छोड़ आए। गीत के अत्यंत लोकप्रिय कवि डा सोम ठाकुर (आगरा) ने जब यह गीत पढ़ा कि, “हम लेके रंगों–नूर का एक कारवाँ चले/ कलियाँ चली, शगूफ चले, गुलिस्तां चले “, दर्शकों ने झूम कर उनका स्वागत किया। वहीं ओज और राष्ट्रीय सद्भावना के विख्यात कवि ‘वाहिद अली ‘वाहिद‘ (लखनऊ), की हर पंक्ति पर तालियाँ बजती रही। अखिल भारतीय गीत ग़ज़ल मंच की ओर से, सम्मेलन सभागार में, अमेरिका में रह रहे अप्रवासी भारतीय कवि प्रमोद राजपूत के काव्य–संग्रह ‘आ जी ले ज़रा‘ के लोकार्पण के अवसर पर यह भव्य कवि–सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
समारोह का उद्घाटन बिहार के सहकारिता मंत्री राणा रणधीर ने किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सांसद रामनाथ ठाकुर उपस्थित थे। मंच और सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता और मंच के महासचिव आनंद किशोर मिश्र के संचालन में आयोजित इस कवि–सम्मेलन का आरंभ आरुषि की वाणी–वंदना से हुआ।
कवि–सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए डा सोम ठाकुर ने अपना बहुचर्चित गीत ” कहने को तो हम आवारा स्वर हैं। इस वक़्त सुबह के आमंत्रण पर हैं/ हम ले आएँ हैं, बीज उजाले के/ पहचानों सूरज के हस्ताक्षर हैं। अपना तेवर मंगला चरण का है/ हम उठे, समय का माथा ठनका है/ अंधी उलझन के वक़्त चले आना/ हम प्रश्न नहीं हैं, केवल उत्तर हैं।“
ओज और राष्ट्रीय सद्भाव के मशहूर कवि वाहिद अली ‘वाहिद‘ ने इन पंक्तियों से काव्य–पाठ आरंभ किया कि “सवालों में देखो, जवाबों में देखो/ हमें रोशनी की किताबों में देखो/ अंधेरे की छतों पर जलते रहे जो/ हमारा लहू इन चरागों में देखो“। उन्होंने ग़ज़ल की तासीर को इन पंक्तियों समझाने की कोशिश की कि, “चमक इसमें नहीं सादी ग़ज़ल है/ अभी पूरी नहीं आधी ग़ज़ल है/ ये मेहनत की मज़ूरी चाहती है/ समझना मत की फ़रियादी ग़ज़ल है।“
अमेरिका से आए शायर डा नूर अमरोहवी का कहना था कि, “वो यूँ सजता संवरता जा रहा / हर दिल में उतरता जा रहाहै। निगाहों पर बहुत पहरे हैं फिर भी / कोई दिल में उतरता जा रहा“। भोपाल से आए मशहूर शायर डा अंजुम बाराबंकवी ने कहा कि “एक काग़ज़ पे नाम पता भी लिख लो/ जाने किस मोड़ पे पड़ जाए ज़रूरत मेरी।” उन्होंने आगे कहा कि “मुझे सोने की क़ीमत मत बताओ/ मैं मिट्टी हूँ, मेरी अज़मत बहुत है। अब वह भी मेरे कपड़ों में सिकन ढूँढता है/ बरसों पहना है जो उतारा मेरा“।
अन्तर्राष्ट्रीय मंचों के चर्चित कवि प्रमोद राजपूत ने अपने लोकार्पित काव्य–संग्रह से गीत, ग़ज़ल और नज़्मों का प्रभावशाली पाठ किया। इनमें उनकी वो रचनाएँ भी सम्मिलित थीं, जिनकी पंक्तियाँ, “-जब कभी झूठ की बस्ती में, सच को तड़पते देखा है/ तब मैंने अपने भीतर किसी, बच्चे को सिसकते देखा है/ हुस्न–ओ–आब तो ठीक है लेकिन, ग़ुरूर क्यूँ तुमको इस पर है/ मैंने सूरज को हर शाम इसी, आसमां में ढलते देखा है।” भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने भाषणों में उद्धृत किए जाने के कारण ख़ासा चर्चा में रही।
आगरा से आए वरिष्ठ कवि डा राज कुमार रंजन, भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी और कवि अनिल कुमार सिंह, सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘, डा शंकर प्रसाद, सुनील कुमार दूबे, आराधना प्रसाद, रमेश कवंल,जीनत शेख़, कवि घनश्याम, कालिन्दी त्रिवेदी, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को प्रभावित किया।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में डा अनिल सुलभ ने, लोकार्पित पुस्तक के कवि प्रमोद राजपूत की काव्य–प्रतिभा की भूरि–भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि, भौतिक लिप्सा में अंध–लिप्त अमेरिकी संस्कृति में श्री राजपूत ने हिन्दी और काव्य की संस्कृति को जगाए रखा है, यह बहुत बड़ी बात है। इनकी कविताएँ, न केवल आत्मीय–संवेदनाओं से परिपूर्ण है, बल्कि इनमें काव्य–कला का सौंदर्य भी मुखर हुआ है। ये मन की पीड़ा की कलात्मक प्रस्तुति तो करते हीं हैं, जीवन की मूल समस्याओं की ओर भी ध्यान खींचते हैं।
सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत डा नागेन्द्र पाठक ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।
इस अवसर पर, डा शालिनी पाण्डेय, राज कुमार प्रेमी, पूनम सिन्हा श्रेयसी, डा सुधा सिन्हा, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा सुलक्ष्मी कुमारी, डा मीना कुमारी, डा बी एन विश्वकर्मा, संजू शरण, श्रीकांत सत्यदर्शी, समेत सैकड़ों की संख्या में कवि एवं काव्य–रसिक उपस्थित थे।