कौशलेन्द्र पाण्डेय,
पटना, १८ जनवरी। हिन्दी भाषा के उन्नयन में भारत के जिन महानुभावों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, उनमें एक अत्यंत आदरणीय नाम डा लक्ष्मी नारायण सिंह ‘सुधांशु‘ जी का है, जो बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी थे और बिहार विधान सभा के भी अध्यक्ष रहे। वे, राजनीति और साहित्य, दोनों के आदर्श व्यक्तित्व थे। राजनीति में उनका आदर्श ‘महात्मा गांधी‘ और हिन्दी–सेवा में उनका आदर्श ‘राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन‘ थे। ‘राजनीति‘ और ‘हिन्दी
यह बातें, आज यहाँ, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सुधांशु जी की जयंती पर आयोजित ‘राजभाषा–संगोष्ठी तथा लघुकथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, स्वतंत्र–भारत की सरकार की राज–काज की भाषा ‘हिन्दी‘ हो, इस विचार और आंदोलन के वे देश के अग्रिम–पंक्ति के नायक थे। देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद, पुरुषोत्तम दास टंडन, पं मदन मोहन मालवीय, चक्रवर्ती राज गोपलाचारी तथा सुधांशु जी जैसे हिन्दी–भक्तों के कारण, भारत की संविधान सभा ने १४ सितम्बर १९४९ को, २० से अधिक भारतीय भाषाओं में से, जिन्हें ‘राज–भाषा‘ का दर्जा दिया गया था, ‘हिन्दी‘ को भारत–सरकार की राजकीय भाषा के रूप में चुना था। दुर्भाग्य से हिन्दी के साथ अगले १५ वर्षों के लिए ‘अंग्रेज़ी‘ को काम–काज की भाषा बने रहने देने के निर्णय से, हिन्दी पिछड़ गई और बाद में राजनैतिक अदूरदर्शिता ने हिन्दी को, ‘राज–भाषा‘ के स्थान से अनिश्चित काल के लिए दूर कर दिया। ‘हिन्दी‘ कभी देश की ‘राष्ट्र–भाषा‘ होगी, यह स्वपन आज तक स्वपन हीं बना रहा गया। यह भारत के नागरिकों के लिए कितनी लज्जा की बात है कि इस देश की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है और देश के राजकाज की भाषा भी, इस देश की भाषा नहीं, एक विदेशी भाषा है।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, सुधांशु जी बड़े कथाकार, कवि, समालोचक, पत्रकार और प्रतिष्ठित राजनेता थे। वे बिहार विधान सभा के अध्यक्ष भी रहे। उनकी दो साहित्यिक कृतियाँ ‘गुलाब की कलियाँ’ और ‘रसवंत” बहुत हीं लोकप्रिय हुईं।
सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी,सुनील कुमार दूबे, कवि घनश्याम, आरपी घायल, अंबरीष कांत, राज कुमार प्रेमी, डा मनोज कुमार, डा कुंदन कुमार, श्रीकांत व्यास तथा डा शालिनी पाण्डेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सुप्रसिद्ध समाजसेवी श्याम नारायण महाश्रेष्ठ को, उनके ७५वें जन्म–दिवस पर डा सुलभ ने पुष्पहार और वंदन–वस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा– गोष्ठी में, मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और साहित्यकार मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन‘ ने “पेंशन‘ शीर्षक से, डा शंकर प्रसाद ने ‘बोनस‘, डा पुष्पा जमुआर ने ‘अंतर्मुमुक्षा‘, डा मधु वर्मा ने ‘उपहार‘, डा कल्याणी कुसुम सिंह ने ‘छठपर्व‘,अमियनाथ चटर्जी ने पतंग‘, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने ‘आत्महत्या की ओर‘, डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘स्वार्थ से ऊपर‘, डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने ‘शिक्षा‘, जयप्रकाश पुजारी ने ‘भूल‘, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त ने ‘नंगा समाज‘, अशोक कुमार ने ‘आख़िर क्यों?’, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘ ने‘सबक़‘, प्