पटना, ९ फ़रवरी। भारतीय–दर्शन में आधुनिक–समाज की सभी समस्याओं का निदान और सभी प्रश्नों के उत्तर अंतर्निहित हैं। यह मानव–समुदाय की एक ऐसी पूँजी है, जिस पर देव–तुल्य मनुष्यों की पीढ़ी तैयार की जा सकती है। इसमें निखिल वसुधा के कल्याण की भावना से संपूर्ण मानव जाति के उन्नयन का मार्ग प्रशस्त किया गया है। दुर्भाग्य है कि आधुनिक–समाज ‘भारतीय–दर्शन‘ से निरंतर दूर होता जा रहा है, जिसमें भारतीय–समाज भी सम्मिलित है।
यह बातें आज यहाँ साहित्य सम्मेलन में कीर्ति–शेष चिंतक–कवि हृदयनारायण की स्मृति में, ‘भारतीय–दर्शन और आधुनिक समाज‘ विषय पर, आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि हज़ारों वर्ष के तप पर आधारित चिंतन के गर्भ से भारतीय–दर्शन का, हमारे महान ऋषियों के मुख से, प्रस्फुटन हुआ। हमारा चिंतन ‘सादा–जीवन और उच्च विचार‘ का है। हम जीवन को विलासिता–पूर्ण नहीं, ‘आनंद–प्रद‘ बनाने की शिक्षा देते हैं। यदि मानव–समाज भारतीय–दर्शन को आत्म–सात करे, तो एक दिन ऐसा आएगा, जब संपूर्ण मानव–जाति अपनी अद्भुत मानसिक–शक्तियों के कारण ‘विशिष्ट–मानवों की जाति बन जाएगी। तब उनके मन में आने वाले विचार तत्क्षण फलीभूत होंगे। उन्होंने हृदय नारायण जी को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए कहा कि हिन्दी–साहित्य के साधु–पुरुष थे हृदय जी। लेखन की दृष्टि से भी और आचरण–व्यवहार और व्यक्तित्व से भी। उनकी आध्यात्मिक और साहित्यिक साधना साथ–साथ चली। संसार में रहते हुए भी उन्होंने अपनी तपस्या की और सिद्धि भी प्राप्त की।
मुख्य–वक़्ता के रूप में अपना व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए, बिहार के पूर्व मुख्य सचिव विजय शंकर दूबे ने कहा कि, भारतीय दर्शन को समझना और समझाना अत्यंत दुरूह कार्य है। इसका बहुत व्यापक स्वरूप है। इसमें अनेक मतों का समावेश है। इसके दो रूप सामने आते हैं, जिसमें एक आस्तिक विचार है और दूसरा नास्तिक ! भारतीय दर्शन का निचोड़ यह है कि हम सभी सद्गुणों को अपनाएँ और उस पर आचरण करें। समाज इन विचारों पर चले तो जीवन सुंदर, सार्थक और कल्याणकारी हो
संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि, हृदय नारायण जी एक शरीर नही दिव्य आत्मा थे। वे एक महान दार्शनिक–साहित्यकार थे। भारतीय दर्शन हर प्रकार से परिपूर्ण है। इसमें आत्मा–परमात्मा के निगूढ़ तत्त्व को भी समझा गया है तो जीवन को सुखद मूल्यवान बनाने के मार्ग भी बताए गए हैं।
मुख्य अतिथि के रूप में अपना विचार व्यक्त करते हुए, पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने कहा कि, हृदय नारायण जी का जीवन और साहित्य आध्यात्मिक चेतना से प्रकाशमान था। उन्होंने जो सृजन किया वह समाज के लिए अत्यंत मूल्यवान धरोहर है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने हृदय नारायण जी के आध्यात्मिक और साहित्यिक व्यक्तित्व की विस्तारपूर्वक चर्चा की और कहा कि,उनकी ४० से अधिक पुस्तकों में उनका व्यापक दार्शनिक–चिंतन प्रकट हुआ है।
बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष विजय प्रकाश, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, हृदय नारायण जी के पुत्र डा निगम प्रकाश नारायण, डा निर्मल प्रकाश नारायण, डा निकुंज प्रकाश नारायण, प्रो वासुकीनाथ झा, डा बाल कृष्ण उपाध्याय, डा मंजू प्रकाश, कुमार अनुपम, डा अशोक प्रियदर्शी बच्चा ठाकुर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, शशि भूषण कुमार और डा सुलोचना झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर, डा संगीता नारायण, राज कुमार प्रेमी, डा विनीता नारायण, ज्ञान वर्द्धन मिश्र, डा किरण नारायण, चंदा मिश्र, डा सुधा सिन्हा, मनोरमा तिवारी, लता प्रासर, डा मुकेश कुमार ओझा, विभा आजातशत्रु, श्रीकांत व्यास, डा जय प्रकाश पुजारी, कृष्णरंजन सिंह, निकुंज प्रकाश नारायण, डा आर प्रवेश, अरविंद कुमार सिंह, डा एच पी सिंह, अर्जुन सिंह समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने किया।
कौशलेन्द्र पाण्डेय