अनुज मिश्रा, मुख्य संवाददाता. दिल्ली विधान सभा 2020 चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर अपना वर्चस्व स्थापित करते हुए 70 में से 62 सीटों पर जीत हासिल किया है । लगातार तीसरी बार आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अपनी सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की है। 400 से ज्यादा सांसद, लगभग सारे केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री एवं गृह मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक यानि कुल मिलाकर देश के बड़े बड़े अनुभवी राजनीतिज्ञ भी एकसाथ मिलकर ब्यूरोक्रेट से नेता बने अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की लहर को रोकने में नाकामयाब रहे। दिल्ली की जनता को फ्री बिजली, पानी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा मुहैया कराने वाले एवं विकास का सपना दिखाने जैसी स्थानीय मुद्दे वाली सरकार चाहिए नाकि अनुच्छेद 370, राम मंदिर और एन आर सी जैसे मुद्दों पर बात काने वाली सरकार।
“आप” ने कुल मतों का 50% से ज्यादा मत प्राप्त किया। हालाँकि भाजपा भी इस बार अपना वोट बढ़ाने में सफल रही और पिछली बार के 32% से बढ़कर लगभग 38% और अगर सहयोगी पार्टियों को मिला दे तो लगभग 40% मत प्राप्त किए जो की निराशा में भी आशा की किरण जैसी है। कई जानकारों की माने तो आप को विजयी बनाने में सबसे ज्यादा सहयोग कांग्रेस पार्टी का रहा है क्योकि जो वोटर आप की तरफ गए वो सारे कांग्रेस के ही वोटर थे । और शायद इसी कारण कांग्रेस ने पूरी ईमानदारी से प्रचार प्रसार नहीं किया जैसा की परिणाम के बाद आये कई सारे कांग्रेसी नेताओ के वक्तव्य से पता चल रहा है की वो अपना खाता भी नहीं खुलने से इतने चिंतित नहीं है जितना की भाजपा के सत्ता में ना आने से खुश है ।
इस बार दिल्ली की जनता ने दलबदलू नेताओ को भी अच्छा सबक सिखाया है जिसमे आप से भाजपा में गए कपिल मिश्रा हो या आप को छोर कांग्रेस का दामन थामने वाली अलका लाम्बा। जनता ने ये बता दिया की सिर्फ ख्याली पुलाव पका कर जनता को भ्रमित नहीं कर सकते बल्कि आपको जमीनी स्तर पर जनता को बिश्वास दिलाना पड़ेगा की उनकी जरूरतों का पूरा ख्याल वो रख पाएंगे। शाहीन बाग़, हिंदुस्तान – पाकिस्तान और गोलीमार जैसे भाजपा नेताओ के वक्तब्य धरे के धरे रह गए। पूर्वांचली मतदाताओ को लुभाने के लिए यूपी और बिहार के मुख्यमंत्रियों को भी भाजपा
ने मैदान में उतारा लेकिन कोई काम न आया और ये वही जनता है जो उस बिहार से सम्बन्ध रखती है जहा अगले 6 महीने में चुनाव है।जनता अब धर्म-जात से ऊपर उठ कर स्थानीय विकास की बात चाहती है। इसमें सिर्फ भाजपा या नेता को ही नहीं बल्कि बिहार की जनता को भी दिल्ली में हुए चुनाव से सिखने की आवस्यकता है की अब जात-धर्म से ऊपर उठ कर परिवर्तन, विकाश और बदलाव के लिए वोट करे ताकि उनका भी बदलाव हो और बिहार का भी। अगर बिशेषज्ञो की माने तो बिहार में नितीश कुमार से अलग हो दिल्ली में केजरीवाल का मार्गदर्शन करने वाले प्रशांत किशोर का भी काफी योगदान रहा जो 2021 में बंगाल में होने वाले चुनाव में दीदी के लिए भी मार्गदर्शक का काम करेंगे।
भाजपा के लिए ये सबक लेने और मंथन करने की जरुरत है की आखिर एक साल भी नहीं हुए जब मोदी लहर में बिपक्ष और स्थानीय दलों के कल पुर्जे जहा उड़ गए थे वहाँ एक साल के अंदर ही तीन राज्यों में भाजपा को सत्ता से बाहर रहना पड़ा जो की एक चिंता की बात है। पुरानी बातो से सिख लेते हुए आने वाले चुनावों पर ध्यान देने और जनता की नब्ज और जरुरत को पहचानने को आवश्यकता है जैसे की बेरोजगारी और महंगाई ताकि भाजपा का भगवा देश के साथ राज्यों में भी लहरा सके। फ़िलहाल तो अच्छे बीते पांच साल और लगे रहो केरीवाल के जिस नारो पे दिल्ली की जनता ने जो जनादेश दिया है क्या केजरीवाल की सरकार दिल्ली की जनता को वास्तव में वो अच्छे दिन दिला पायेगी जिसके भरोसे फिर से वो एक बार और दिल्ली की सत्ता पे आसीन होने जा रहे है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।