पटना, १७ फ़रवरी। पेशे से अभियंता, हृदय से कवि और विनम्र समाजसेवी थे हृषीकेश पाठक। वे एक संवेदनशील और प्रतिभावान कवि थे। समाज को प्रेरित करने वाली उनकी रचनाओं में लोक–पीड़ा और उनके प्रतिकार के प्रखर स्वर हैं। साहित्य और साहित्यकारों के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा रहती थी। साहित्य सम्मेलन के उन्नयन में भी उनका महनीय योगदान रहा। उनके असामयिक निधन से साहित्य–संसार को बड़ी क्षति हुई है।
यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित श्रद्धांजलि–सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि हृषीकेश जी का व्यक्तित्व बहु आयामी था। अभियंत्रण–सेवा में अपने मूल्यवान अवदान के साथ उन्होंने हिन्दी की भी स्तुत्य सेवा की और एक संगठन–कर्ता के रूप में भी जाने गए। वे अवर अभियंता संघ के भी संस्थापक–महासचिव थे।
अपने शोकोदगार में वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि पाठक जी का निधन मनुष्यता और संवेदना से लैश एक बड़े कवि का तिरोहित हो जाना है। वे समर्थ कथाकार और प्रभावशाली कवि भी थे। उन्हें लेखन और आचरण की साम्यता के लिए स्मरण किया जाएगा। उनकी कहानियाँ अत्यंत मर्म–स्पर्शी हैं।
सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि पाठक जी उच्च–श्रेणी के कवि और अत्यंत मूल्यवान कथाकार थे। वरिष्ठ कवि आरपी घायल ने उन्हें एक सच्चा और वफ़ादार कवि बताया। विजय गुंजन ने अपने शोकोदगार में कहा कि पाठक जी अनेक सद्गुणों से युक्त एक सच्चे इंसान थे। वे बड़े कवि और उससे भी बड़े इंसान थे।वे गंभीर लेखन करते थे।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, राज कुमार प्रेमी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कृष्णरंजन सिंह, जय प्रकाश पुजारी, अम्बरीष कांत, अर्जुन कुमार सिंह, प्रवीर विशुद्धानंद, बाँके बिहारी साव, श्रीकांत व्यास, नेहाल कुमार सिंह तथा अमित कुमार सिंह ने भी अपने शोकोदगार व्यक्त किए। सभा के अंत में दो मिनट मौन रहकर दिवंगत आत्मी की सद्गति हेतु प्रार्थना की गई।
कौशलेन्द्र पाण्डेय