पटना, १८ फ़रवरी। हिंदी साहित्य में अतुल्य अवदान देनेवाले तथा काव्य में प्रपद्य–वाद के प्रवर्त्तक आचार्य नलिन विलोचन शर्मा आलोचना–साहित्य के शिखर–पुरुष थे। वे न होते तो श्रेष्ठ आँचलिक उपन्यासकारके रूप में हिन्दी साहित्य में प्रतिष्ठित हो जाने वाले फनीश्वरनाथ रेणु भी न होते। रेणु जी भी उन सैकड़ों प्रतिभाशाली साहित्यकारों की भाँति अलक्षित हीं रह जाते, जिनकी ओर समालोचकों की दृष्टि नही जा सकी। नलिन जी ने हीं रेणु की उस बहुचर्चित पुस्तक ‘मैला आँचल‘ पर, साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘साहित्य‘ में अपनी समीक्षा प्रकाशित की थी और उसे सर्वश्रेष्ठ आँचलिक उपन्यास बताया था । नलिन जी की इस टिप्पणी ने रातोंरात उस पुस्तक और पुस्तक के लेखक को हिन्दी साहित्य में शीर्ष पर पहुँचा दिया।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में उनकी १०५वीं जयंती पर आयोजित समारोह और कवि–सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, चमत्कृत करने वाली प्रतिभा और विद्वता के कवि और समालोचक थे नलिन जी। उन्होंने ४५ वर्ष की अपनी अल्पायु में १४५ वर्ष के कार्य कर डाले। हिंदी–संसार अपने उस महान पुत्र पर गर्व करता है। पटना विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक और साहित्य–सम्मेलन के साहित्यमंत्री के रूप में उनके कार्यों की तुलना नहीं की जा सकती १९५० से १९६२ तक उन्होंने आचार्य शिवपूजन सहाय के साथ ‘साहित्य‘ के संपादन में ऐसी अनेक समिक्षाएँ लिखीं, जिनसे हिंदी साहित्य में आलोचना के मानदंड निश्चित हुए। ‘मानदंड‘ शीर्षक से उनकी एक समालोचना की पुस्तक भी आई, जो आज भी आलोचना का मानदंड बनी हुई है। वे कविता में प्रयोग के पक्षधर थे। हिन्दी–काव्य में उनके प्रयोग को ‘प्रपद्यपाद‘ के रूप में जाना जाता है। उनके साथ सुप्रसिद्ध कवि केसरी कुमार और नरेश ने अपना अमूल्य योगदान दिया था। इसीलिए इसे, इन तीनों कवियों के प्रथमाक्षर से जोड़कर, ‘नकेन‘ वाद भी कहा गया। नलिन जी ने संस्कृत, पाश्चात्य साहित्य और मार्क्स–साहित्य का गहारा अध्ययन किया था। वे मात्र ९ वर्ष के थे तभी उनके विद्वान पिता पं रामावतार शर्मा ने उन्हें ‘संस्कृत अमरकोष‘, कालीदास का ‘मेघदूतम‘ जैसी विश्व स्तरीय रचनाओं को रटा दिया था। नलिन जी की विद्वता हिन्दी साहित्य को कुछ दिन और प्राप्त हुई होती तो हम आलोचना–साहित्य में कुछ और हीं देख पाते।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि, नलिन जी के साथ हिन्दी–कविता छायवादी प्रवृति से बाहर निकल कर यथार्थवादी होने लगती है। आचार्य जी ने हिन्दी कविता को एक नई दिशा दी। बक्सर ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा महेश्वर ओझा ‘महेश‘, प्रो वासुकी नाथ झा, प्रो ललिता यादव, अमियनाथ चटर्जी, शशिभूषण कुमार, प्रो सुखित वर्मा तथा डा रामेश्वर मिश्र ‘विहान‘ ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि–सम्मेलन का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी ने अपनी वाणी–वंदना से किया। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘ ने अपने ख़याल का इज़हार इन पंक्तियों से किया कि, “उफ़ न की, न आह भरी, सब्र से ही काम लिया/ दिल ने भी साथ दिया, दर्द का न नाम लिया/ बेवजह यार यार ये अफ़वाह उड़ा दी तुमने/ मई तो पीटा भी न, बस एक घूँट जाम लिया।” डा शंकर प्रसाद ने तरन्नुम से यह ग़ज़ल पढ़ी कि, “फुर्कत में जब भी मशके–ग़ज़ल सोचते हैं हम/ तेरे बदन का ताज महल सोंचते हैं हम“।
वरिष्ठ ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘, शुभचंद्र सिन्हा, सुनील कुमार दूबे, डा शालिनी पाण्डेय, रेखा भारती, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, जय प्रकाश पुजारी, नूतन सिन्हा, बच्चा ठाकुर, प्रभात धवन, सच्चिदानंद संहा, अर्जुन प्रसाद सिंह आदि कवियों एवं कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं का ध्यान खींचा। मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
कौशलेन्द्र पाण्डेय