कौशलेन्द्र पाण्डेय,
साहित्य सम्मेलन में, नवोदित कवियों के लिए प्रशिक्षण–शाला का आयोजन किया गया। आचार्य विजय गुंजन, डा शंकर प्रसाद के साथ सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ स्वयं एक शिक्षक की भूमिका में नज़र आए। कार्यशाला में मात्राओं की गणना, छंद–विधान, अलंकार और प्रतीकों के ज्ञान के साथ गीत–ग़ज़ल, दोहे, मुक्तक, कुं
काव्य–कार्यशाला के पश्चात आयोजित कवि–सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी–वंदना से किया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने मधुर कंठ से ये पंक्तियाँ पढ़ी कि, “मिलती नही पनाह भी फिरते हैं दर ब दर/ क्यूँ कर भला ग़रीब को बेघर बना दिया।“
आचार्य विजय गुंजन ने अपने गीत को स्वर देते हुए कहा कि, “खुल गई मेरे जगत की खिड़कियाँ / लोग देने फिर लगे हैं झिड़कियाँ/गीत कोई आँसुओं के क्यों लिखें/ ख्याति जब उन टेसुओं में भी दिखे। कौड़ियों में बिक गाईं निर्झरनियाँ“।
वरिष्ठ कवि डा राज कुमार प्रेमी, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा सुधा सिन्हा, जय प्रकाश पुजारी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, संजू शरण, श्रीकांत व्यास, अर्जुन प्रसाद सिंह, प्रियंका प्रिया, डा मौसमी सिन्हा, राज प्रिया रानी, अमित कुमार ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया।
कार्यक्रम का आरंभ डा ‘रंगम‘ के चित्र पर माल्यार्पण कर हुआ। अपने उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा सुलभ ने कहा कि डा रंगम एक महान चिकित्सक हीं नहीं, जीवन का राग सुनाने वाले स्तुत्य कवि भी थे। उनकी कविताओं का मूल स्वर ‘प्रकृति और प्रेम‘ है। उनमें समाज की पीड़ा भी है और उसके प्रतिकार के स्वर भी। स्थान–स्थान पर उन्होंने कठोर प्रश्न भी किए, तो सुस्पष्ट उत्तर भी दिए। इसलिए वे साहित्य के प्रश्न हीं नहीं उत्तर भी हैं। उन्होंने कहा कि, रंगम जी के भीतर करुणा और प्रेम का एक सागर लहराता रहा, जिसकी तरंगें उन्हें सृजन की शक्ति और शब्द देती रहीं।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि, वे संपूर्ण मानवीयता से युक्त एक महान चिकित्सक थे। थे तो रेडियोलौजिस्ट, किंतु बिहार में, कैंसर की चिकित्सा में उन्होंने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हृदय–रोग की चिकित्सा में जो स्थान डा श्रीनिवास का है, वही स्थान कैंसर–रोग के उपचार में, रंगम जी का है। दोनों हीं साहित्य और संस्कृति में विशेष अभिरूचि रखते थे। रंगम जी साहित्य सम्मेलन के अर्थमंत्री और उपाध्यक्ष भी रहे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।