पटना, १ मार्च। ‘अबकी होली में है आई याद गाँव की अमराई / भरा मदन रस से तन–मन को, मदमाती वह पूरबाई‘— ‘होली मिल के मनाव फागुन के दिन आयल‘— ‘तन वीणा मन बाँसुरी, छेड़े मधुर तान‘ —- ‘ना ना रे पिया, न पिया होली में भंग‘, जैसी मादक और प्रेम भरी कविताओं तथा होली–गीतों से, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का सभागार, संध्या बेला तक गूँजता रहा। अवसर था, पं जगन्नाथ मिश्र गौड़ ‘कमल‘ की जयंती पर आयोजित ‘रंगोत्सव–कवि–सम्मेलन का। कवि सम्मेलन का आरंभ सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने, सुरीली आवाज़ में इन पंक्तियों से किया कि, “रंग भर कैसे खेलूँ होली रे मैं साँवरियाँ के संग/ ब्रह्मा आए, विष्णु आए और आए अडबंग“। कवि राज कुमार प्रेमी ने मगही में गीत पढ़ते हुए कहा कि “होली मिलके मनाव, फागुन के दिन आयल/ रंग अबीर लगाव, फागुन के दिन आयल“। डा विनय विष्णुपुरी का कहना था कि “कचोट कराह जहाँ सारा मन, दावा सिसकारी से/ मनाए कैसे कोई होली, रंग और पिचकारी से।“
कवि जय प्रकाश पुजारी ने वसंत का स्वागत करते हुए कहा कि, “तन वीणा मन बाँसुरी, छेड़े मधुर तान/ झूम–झूम ऋतुराज वसंत खींचे तीर कमान‘। व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘ ने होलिका जलाने का इस तरह आह्वान किया कि “जली दिल्ली, जला दिल, खोज–खोज जलाओ, संपोलों के बिल, प्रकाश इस होली में।
वरिष्ठ कवयित्री डा कल्याणी कुसुम सिंह ने आह्वान किया कि, “आओ मेरे हित परिजन/ आज खोल दें सारी गाँठें/ आज मिला दें हम अनबन,धो दें आज होली के रंग से“। कवयित्री यशोदा शर्मा ने इस प्रकार अनुनय किया कि ‘ ना ना रे पिया, ना पिया होली में भंग/ भंगिया पी के होली में तू करबा हमके तंग“।
वरिष्ठ कवि शुभचंद्र सिन्हा, कुमार अनुपम, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा अर्चना त्रिपाठी, अंशु पाठक, पंकज प्रियम, डा कुंदन कुमार, अर्जुन सिंह, संजू शरण, बाँके बिहारी साव तथा कुमारी मेनका ने भी होली गीतों से रंगोत्सव में विविध रंग भरे।
अध्यक्षीय काव्य–पाठ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने ग्राम्य होली के उन पुरानी स्मृतियों को इन पंक्तियों से साझा किया कि, “अबकी होली में है आई, याद गाँव की अमराई/ भरा मदन–रस से तन–मन को, मदमाती वह पूरबाई/ —– होली तो है उसकी होली जिसने प्रेम की बोली बोली/ अपना सब कुछ न्योक्षावर कर सात जनम को किसी की होली/ गोरी के कोमल गालों पर जिसने प्रेम की छाप लगाई“।
इसके पूर्व उन्होंने स्मृति–शेष कवि पं जगन्नाथ मिश्र गौड़ ‘कमल‘ को, उनकी जयंती पर श्रद्धा–तर्पण देते हुए, उन्हें ‘छायवाद काल का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कवि‘ बताया। डा सुलभ ने कहा कि, कमल जी महाकवि केदार नाथ मिश्र ‘प्रभात‘ के बड़े भाई थे। ख्याति और कीर्ति में प्रभात जी उनसे आगे निकल गए, किंतु प्रतिभा में वे उनसे कम नही अपितु बड़े थे।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि ‘कमल‘ जी हिन्दी के उन महान कवियों में हैं जिनके अवदान से हिन्दी काव्य–संसार के छायावाद–काल को समृद्धि प्रदान की। उनका काव्य–ग्रंथ ‘प्राकृत–पुरुष‘ उस युग की प्रतिनिधि रचना मानी जा सकती है। अवध बिहारी सिंह, अंबरीष कांत तथा प्रो वीरेंद्र झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।