पटना, ४ मार्च। महान कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु, सीने में अग्नि को पोषित करने वाले, क्रांति–धर्मी कथाकार थे। वे जीवन भर संघर्ष–शील रहे। उनके हृदय में निरंतर एक अग्नि जलती रही। वही लेखनी के माध्यम से कथाओं में प्रकट हुई। उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह भोगे हुए यथार्थ पर आधारित था और जो लिखा उसे जिया भी। उनके साहित्य में ग्राम्य और आंचलिकता की प्रधानता रही। उनके बहुचर्चित उपन्यास ‘मैला आँचल‘ को, साहित्यालोचन के शिखर पुरुष आचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने हिंदी का ‘श्रेष्ठतम आँचलिक उपन्यास‘ माना था। नलिन जी की यही टिप्पणी रेणु जी के साहित्यिक यश–धारा की उन्नयन–बिंदु सिद्ध हुई और रेणु जी हिन्दी–संसार में छा गए। देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में हीं नहीं, स्वतंत्र भारत में भी वे पीड़ित–मानवता के लिए लड़ते–लिखते रहे।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में रेणु जी की जयंती के अवसर आयोजित समारोह और लघुकथा–गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, रेणु जी पर नेपाल में हो रही लोकतंत्र की लड़ाई का बड़ा असर था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नेपाल में हीं कोइराला परिवार के संरक्षण में हुई थी। भारत में वे स्वतंत्रता आंदोलन तथा बाद में समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे। उन्हें अनेक बार जेल की यातना भी सहनी पड़ी। उन्होंने कहा कि आज से रेणु जी की जयंती का शती-वर्ष आरंभ हो रहा है। सम्मेलन का आगामी महाधिवेशन रेणु जी को समर्पित किया जाएगा।
आयोजन का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी–वंदना से हुआ। अपने उद्घाटन–भाषण में पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने कहा कि रेणु जी भारत के सवंत्रता–संग्राम में ही नही, नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के लिए हुए आंदोलन में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत में ‘आपातकाल‘ के विरुद्ध आंदोलन में उन्होंने अपने स्वास्थ्य की परवाह किए विना सक्रिए भाग लिया। उन्होंने राजनीति में भी अपने सामर्थ्यभर हस्तक्षेप किया।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि रेणु जी का संपूर्ण जीवन संघर्ष में बीता। अंतिम समय में वे रोग से भी लड़ते रहे। उनकी बहुचर्चित कृतियाँ ‘मैला आँचल‘ और ‘परती परी कथा‘ से उन्हें श्रेष्ठ आँचलिक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। इन दोनों ही उपन्यासों में पूर्णिया अंचल को केंद्र में रखा गया है। ऐसा लगता है कि कथा का कोई पात्र उपन्यास का नायक अथवा नायिका न होकर ‘पूर्णिया‘ ही कथा का नायक है। सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी तथा अरविंद कुमार सिंहने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में, डा कल्याणी कुसुम सिंह ने ‘अंध–विश्वास‘, अमियनाथ चटर्जी ने ‘मांस‘, डा शंकर प्रसाद ने ‘चीख़‘, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने ‘दिखाने वाले नोट‘, डा सुलक्ष्मी कुमारी ने ‘लक्ष्मी‘, पूनम आनंद ने ‘वसंत पंचमी‘, सागरिका राय ने ‘आलोक बाबू‘,कुमार अनुपम ने ‘माँ‘, राज कुमार प्रेमी ने ‘सच्चा प्यार‘, प्रभात कुमार धवन ने ‘होली‘, डा रमाकान्त पाण्डेय ने ‘देखते रह गए‘ डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘चार दोस्त‘, डा किरण बाला ने ‘बुढ़िया की प्रार्थना‘, अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘संस्कार‘, डा मौसमी सिन्हा ने ‘मीठे बेर‘, डा नीलू अग्रवाल ने ‘आउट डेटेड‘, अजय कुमार सिंह ने ‘बारात‘ तथा डा गोपाल निर्दोष ‘भारत या पैसा‘ शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया।
डा अंशु पाठक, शुभ चंद्र सिन्हा, मधु रानी लाल, जय प्रकाश पुजारी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी और विष्णु प्रभाकर समेत अनेक साहित्य सेवी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन सम्मेलन के अर्थ मंत्री योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
पटना कौशलेन्द्र पाण्डेय