महाकवि काशीनाथ पाण्डेय ने संसार की सबसे लम्बी कविता लिखी
साहित्य सम्मेलन में जयंती पर गीत–संग्रह ‘कुछ पूजा के आयोजन सा‘ का हुआ लोकार्पण,
आयोजित हुई स्मृति व्याख्यान प्रतियोगिता
पटना, ८ मार्च। महाकवि काशीनाथ पाण्डेय सच्चे अर्थों में ‘अक्षर–पुरुष‘ थे। उन्हें अनेक भाषाओं के शब्दों के हीं नही अक्षरों के भी अर्थ ज्ञात थे। अपनी रचनाओं में उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेज़ी समेत अनेक भाषाओं के शब्दों का विलक्षण प्रयोग किया। वे अद्भुत प्रतिभा के प्रयोगधर्मी कवि थे। उन्होंने ‘बयाने–क्रौंच ताईर‘ नाम से तीस हज़ार छः सौ नब्बे पंक्तियों वाली संसार की सबसे लम्बी कविता लिखी। उनके कार्यों का मूल्याँकन अब तक नहीं हो सका है।
यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित महाकवि की जयंती एवं पुस्तक–लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, हिन्दी के विद्वान समालोचकों को उनके अत्यंत मूल्यवान साहित्यिक अवदानों का गहन अध्ययन एवं मूल्याँकन करना चाहिए।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी के पूर्व निदेशक प्रो अमर कुमार सिंह ने कहा कि, भले हीं ‘महाकाव्य‘ के शास्त्रीय मानक के अनुरूप काशीनाथ पाण्डेय जी ने कोई ऐसी कृति नहीं दी, किंतु उन्होंने इतना कुछ लिखा और इस प्रकार लिखा कि उन्हें ‘महाकवि‘ के रूप में अवश्य ही मान्यता मिलनी चाहिए। वे एक प्रतिभा–सिद्ध महाकवि हैं, इसमें कोई संदेश नही होना चाहिए। उनकी रचनाओं को पाठ्यक्रमों में भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।
महाकवि के गीत–संग्रह ‘कुछ पूजा के आयोजन सा‘ का लोकार्पण करते हुए, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के पूर्व कुलपति और विद्वान साहित्यकार प्रो अमरनाथ सिन्हा ने कहा कि, किसी भी साहित्यकार का मूल्याँकन तभी हो पाता है, जब उनकी कृतियाँ सामने लाई जाती हैं। इस दिशा में हमें सार्थक पहल करनी चाहिए। पाण्डेय जी ने जो कुछ लिखा है, उसे प्रकाश में लाया जाना चाहिए तथा उन्हें समालोचकों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकार्पित पुस्तक की कविता ‘जीना ही है‘ में एक महाकाव्य के बीज तत्त्व दिखाई देते हैं।
मुख्य वक़्ता डा ब्रजेश पाण्डेय ने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि महाकवि को अपनी एक कविता में यह कहना पड़ा कि “कौन नहीं जानता कि काशीनाथ पाण्डेय को कोई नही जानता“। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों और विद्वान समालोचकों को यह जानने की चेष्टा करनी चाहिए कि कहाँ और किसके द्वारा क्या लिखा जा रहा है। पाण्डेय जी ने गीत और नवगीत में भी महनीय अवदान दिए, लोकार्पित पुस्तक उसका दृष्टांत है। इसमें संकलित रचनाएँ पिछली सदी के ६ठे दशक में लिखी गई थीं। इनमें हिन्दी नवगीत के प्रारंभिक सूत्र मिलते हैं। नवगीत के प्रारंभिक इतिहास को समझने के लिए, महाकवि की रचनाओं का अध्ययन आवश्यक है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित राजभाषा विभाग के निदेशक इम्तियाज़ अहमद करीमी ने कहा कि हम बिहार के लोग अपने बीच के लोगों का उचित सम्मान नहीं करते। हमें दूर का ढोल सुहाना लगता है। ऐसा न होता तो पाण्डेय जी जैसे लोग पीछे नहीं होते। उन्होंने महाकवि की अप्रकाशित पुस्तकों के प्रकाशन में राज भाषा विभाग के सहयोग का आश्वासन दिया।
बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी के निदेशक डा दिनेश चंद्र झा, दूरदर्शन केंद्र पटना की पूर्व केंद्र–निदेशक रत्ना पुरकायस्थ, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा सुलक्ष्मी कुमारी तथा अविनय काशीनाथ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया। इस अवसर पर, कवि राज कुमार प्रेमी, कृष्णरंजन सिंह, शिव कुमार, मनोरमा तिवारी समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे। चर्चित पर्यावरण–कार्यकर्ता देवप्रिया दत्त ने ‘तरुमित्र‘ की ओर से अतिथियों को पौंधे देकर सम्मानित किया।
इस अवसर पर आयोजित स्मृति–व्याख्यान प्रतियोगिता में, पटना विश्वविद्यालय, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय, जय प्रकाश विश्वविद्यालय तथा नालंदा मुक्त विशविद्यालय के छात्र–छात्राओं ने भाग लिया। सर्वाधिक पदक प्राप्त करने के कारण इस वर्ष का ‘सकल विजेता हस्तांतरणीय–स्मृतिका, पाटलिपु