शैलेश तिवारी, पोलिटिकल संपादक.
समाज कल्याण विभाग,महिला विकास निगम द्वारा एक राज्य में जेंडर जस्टिस के लिये एक महत्वाकांक्षी योजना जेंडर रिसोर्से सेंटर के रूप में स्थापित किया गया था। शुरुआत में यह डेफिड (DFID) के फ़ंड से संचालित हो रहा था, बाद में इसे महिला विकास निगम के अंतर्गत संचालित मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना के तहत डाल दिया गया।
पर अब जानकारी मिली है कि अब इसे बंद किया जा रहा है।हलांकि शुरुआत से ही विभाग/निगम में कार्यरत कुछ नकारात्मक प्रवृत्ति के लोग इसके कार्य में बाधा डाल रहे थे, पर अब उनकी मंशा पूरी तरह सफल होती दिख रही है।मैंने इस संस्था में प्रधान सलाहकार की भूमिका में कार्य किया है, और कुर्सी टेबुल के इंतज़ाम के साथ साथ कई महत्वपूर्ण शोध भी किये। बिहार में शराबबंदी पर शायद, GRC का ही पहला और अंतिम सर्वे था।महिला दुग्ध सहकारी समिति जो कमफेड द्वारा पोषित है उस पर भी क्या गया काम एक मील का पत्थर है। मछली पालन उद्योग में महिलाओं की भूमिका पर किया गया इसका काम अब तक सार्वजनिक नहीं हुआ है। इसके अलावे जी आर सी में हजारों छात्रों, मीडिया के विद्यार्थीयों, सैकड़ों मीडिया कर्मीयों, सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों तथा स्वयंसेवी संस्थाओं का जेंडर उन्मुखीकरण किया।यूनिसेफ़ के साथ मिलकर बाल विवाह एवं दहेज प्रथा पर शायद अब तक का सबसे लंबा मीडिया कैंपैन जी आर सी में ही किया था। पर अब सब इतिहास के गर्त में जा रहा है।जेंडर इ रेपोसटरी (Gender E Repository) का भी निर्माण जी आर सी नें किया था,पर सब बेकार।
मुझे ऐसा लगता है इस राज्य में किसी भी सकारात्मक सोच की जगह नहीं है।अपनें इस विज्ञप्ति के माध्यम से मैं बिहार सरकार का ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा कि GRC को बंद होनें से बचा लें तथा उसे एक स्वायत्त रूप प्रदान करें। इसके लिये राज्य की जनता आपका आभारी रहेगा.