मैं बहुत लंबे लंबे पोस्ट लिखता हूं। यह भी उनमें से एक है। मुझे नहीं फर्क पड़ता कि आप पूरा पढ़ते हैं या नहीं पढ़ते हैं। फिर भी मैं अपना काम कर रहा हूँ। बात तात्कालिक समस्या कोरोनावायरस के बैकग्राउंड में है। ब्रह्मांड की उम्र 13 अरब 80 करोड़ वर्ष है। यह तब से है जबसे बिग बैंग हुआ है। इसके बाद मिल्कीवे (आकाशगंगा) 13 अरब 60 करोड़ साल पहले बनी। इसमें एक तारा सूर्य भी है। जिसकी उम्र 4 अरब 60 करोड़ 30 लाख वर्ष है। पृथ्वी इसी सूर्य का एक हिस्सा हुआ करती थी। जो सूर्य के टूटने से 4 अरब 54 करोड़ों साल पहले बनी। पृथ्वी सभी चीज को समन्यवय में लाने में सक्षम होती है जो उसकी सतह पर होती है। हालांकि इसका समय काल मनुष्य की उम्र के हिसाब और समझ से लाखों या करोड़ों साल का हो सकता है। जब मनुष्य तीन अरब 80 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर सबसे पहली बार बना तो वह एक कोशिकीय जीव था। जो न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन से मिलकर बना था। तब से क्रमिक विकास के सहारे मानव आज के वास्तविक रूप में धरती पर विद्यमान है। उसने सुपर महादेश पैन्जिया को गोंडवाना और लॉरेशिया में टूटते देखा। और इसके बाद गोंडवाना और लॉरेशिया अन्य भागों में भी टूटे। मानव आइस ऐज जैसी ही कितनी परिस्थितियों से गुजरा। उसका अस्तित्व बना रहा। उसका अस्तित्व क्यों बना रहा यह चर्चा का विषय नहीं बल्कि एक स्थापित तथ्य है। उसका अस्तित्व इसलिए बना रहा है क्योंकि उसमें प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं की। मनुष्य की औसत उम्र 75 वर्ष होती है। पिछले 250 वर्षों में मानव ने मानव जनित तरीकों से पृथ्वी पर विनाश किया है। यह किसी से छिपा नहीं है। इंग्लैंड में हुई औद्योगिक क्रांति के बाद से लगातार प्रकृति से खिलवाड़ हुआ है। पृथ्वी इस खिलवाड़ से परे अपने सतह पर समन्वय स्थापित करने में सक्षम है। इंसान यह भूल गया है। एक साधारण मनुष्य का दिमाग 1260 क्यूबिक सेंटीमीटर का होता है। जिसके दम पर उसने पृथ्वी के सतह पर प्रकृति के साथ घोर अत्याचार किया है। कोरोनावायरस एक एक कोशिकीय आर्गनिज्म है जो प्रोटीन और फैट से मिलकर बना है। उसमें जान नहीं है। वह निर्जीव है। उसे मारा नहीं जा सकता है। उसे नंगी आंखों से देखा नहीं जा सकता है। उसने 1260 क्यूबिक सेंटीमीटर दिमाग वाले इंसान को असहाय व लाचार कर दिया है। अब आप सोचिए कोरोनावायरस का पृथ्वी पर उसके आकार के आधार पर क्या महत्व है। कुछ भी नहीं! कोरोनावायरस तात्कालिक समस्या इसलिए हम सब बहुत परेशान हैं। काफी लोगों ने जाने भी गंवाई हैं। सारी स्थापित व्यवस्था तहस-नहस हो चुकी हैं। लोग घरों से बाहर नहीं निकल सकते। उसकी वैक्सीन बनाई जा सकती है। उसका इलाज खोजा जा सकता है। लोग बचाव के तरीके अपना सकते हैं। लेकिन इस महामारी में भी एक सीख छिपी हुई है। इंसान इसको जितना जल्दी समझ ले उतना ही बेहतर है। ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज इसी तरह की भविष्य की भयंकर समस्या है। जिसको यदि समय रहते रोका नहीं गया तो इंसान उससे भाग भी नहीं पाएगा। उसका इलाज भी नहीं ढूंढ पाएगा। यदि ओजोन की परत का ऐसे ही ह्रास होता रहा तो अल्ट्रावायलेट-बी किरणों को आपके डीएनए को नुकसान पहुंचाने में कोई परेशानी नहीं होगी। स्किन कैंसर और इसी तरह की और कई बीमारियां सबको होंगी। बचने का कोई साधन नहीं होगा। कोई जुगत नहीं होगी। तापमान बढ़ने पर समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा जिससे पता नहीं कितने देश डूब जाएंगे। आदमी को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन नहीं बचेगी। सोचिए वह स्थिति कितनी भयावह होगी। जब एक न दिखने वाले एक कोशकीय कोरोनावायरस से यह हाल है। पृथ्वी एक समय काल में अपनी सतह पर समन्वय स्थापित कर लेगी। पृथ्वी समन्यवय स्थापित कर लेगी किन्तु मानव का अस्तित्व नहीं रहेगा। क्योंकि हम उसके समय काल में नगण्य हैं। या कहें कि हमारा कोरोनावायरस से ज्यादा औचित्य नहीं।
अमित प्रताप सिंह एक युवा और अभिनव लेखक हैं।
वह समकालीन और ऐतिहासिक महत्व पर और वन्यजीव, खेल, इतिहास और राजनीति पर विभिन्न मुद्दों पर लिखते हैं। सभी सामग्री उनके विचारों की राय है।