शिक्षिका अर्चना सिन्हा ने कहा कि आज की परिस्थिति विशेष में हमारे देश भारत की बहुत ही भयावह स्थिति हो गयी है। सरकार के आदेश का पालन कर रहें हैं देश में आपातकालीन का बिगुल बज गया है ” लाॅकडाउन” का ताला लग चुका है चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है लोग अपने-अपने घरों में बंद हो गये हैं। अमीर , गरीब ऊँची जाती नीची जाती का हो सभी अपने-अपने कामों को बंद कर बस घर में स्थापित हो गयें हैं। जिसका यह परिणाम देखने को मिल रहा है कि–जान के लाले तो पड़ ही रहें है इस बीमारी से साथ ही साथ “भूखमरी “भी एक विषाक्त बीमारी बन गया है जो लोगों को अजग़र बन निगलने को तैयार है। हमारे देश के14 करोड़ 40 लाख लोंगों ने बड़े-बड़े महानगरों में रोजगार पाने तथा जीविका के लिए प्रवास किया था ; जिनमें देश में 25 लाख प्रवासी मजदूर कृषि एवं बाग़वानी, ईंट-भट्टों खदानों , निर्माण स्थलों तथा मतस्य प्रसंस्करण में कार्यरत हैं लेकिन देश की इस भयावह स्थिति को देखते हुए “आंतरिक विस्थापित “होने पर मज़बूर हो अपने-अपने गाँव, कस्बे में लौटने लगे हैं। अब आलम यह है कि बाहर न निकलने के कारण स्थिति बहुत ही बरहाल हो गयी है। न तो इनके पास जमा धन राशि है जिसका उपयोग कर जीवन याचिका चला पायें। बात यही समाप्त नहीं होती येसे अनेकों लोग हैं जिनकी हालत इनसे भी बत्तर है जैसे आॅटों चालक ,ढेला चालक, मजदूर ,किसान,ढ़ेहरी वाले ,फेरी वाले , कामवाली इन सभी लोगों का जीवन हर दिन के कमायी पर हीआश्रित होता है। जरा सोचिए आज “लाॅकडाउन ”
होने से इनकी दशा क्या हो गयी है। अब सबाल यह उठता है कि यही स्थिति बनी रही तो इनके जीने का आधार क्या होगा। ये सवाल हमारे राष्ट्र के सामने बहुत बड़ा सबाल खड़ा कर देता है कि इस समस्या का समाधान कैसे होगा? प्रधानमंत्री ने जीतने भी योजनायें गरीबों के लिए सुनियोजित किये हैं क्या उनसे इनके समस्या का समाधान हो सकता है? इनके इस व्यवस्था के बिचौलिय ही अपना पेट पहले भर लेंगें ।इन तक पहुँचना तो बाद की बात है।आज फसलें पक कर तैयार लेकिन काटने वाला कोई नहीं है फसलें भी बर्बाद हो रही है।मँहगायी का मार तो और पड़ने वाली है। अब यह देखना है कि अगर “लाॅकडाउन ” टूटता भी है तो कुछ महिने तक लोंगों को काम मिल भी पायेगी की नहीं ; कारखाने खेलेंगे कि नहीं ऐसी कितनी परिस्थितियाँ उत्पन्न होगी। अतः अब सरकार को इसके लिए कुछ करना होगा इनके आय के साधन का उपाय ढ़ूँढ़ना होगा तभी इनके इस समस्या का समाधान हो सकता है।
सभी बुद्धि जनों को इस विषय पर विचार करने की आवश्यकता है ताकि समस्त देशवासियों के समस्या का समाधान हो सके।
रामा शंकर प्रसाद,