अप्रैल 30 तक लॉकडाउन बढ़ने के आसार के बीच जनता दल राष्ट्रवादी ने बहुत ही गंभीर और तर्कसंगत सवाल उठाया है.जेडीआर ने कहा है कि मजबूरी है तो छह महीने के लिए लॉकडाउन बढ़ा दें, प्रधानमंत्री के साथ तमाम देशवासी हैं.मगर कोरोना का मामला प्रशासनिक नहीं, मेडिकल से जुड़ा है. मेडिकल विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा के बाद ही आगे लॉकडाउन बढ़ाया जाये या नहीं, फैसला लेना चाहिये। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक़ रहमान का कहना हैं। कि प्रधानमंत्री जी से हमारा सवाल यह है कि लॉकडाउन कोरोना बीमारी से बचाव के लिए है। इसलिए जनता इसका पालन करने पर बाध्य है। मगर मेरा अनुरोध है, कि यदि यह लंबा खींचा तो आम-जनता के लिए लॉकडाउन परेशानी का सबब भी बन सकता है। इसलिए बेहतर यह होता कि राज्यों के मुख्यमंत्री से बात करने से पहले डाक्टरों की एक्स्पर्ट टीम से सलाह-मशवरा करतें तथा उनके मशवरा एवं उनकी बातों को सुनते हुए लॉकडाउन की तारीख़ बढ़ातें तो जनता इस पर मुकम्मल विश्वास करती। उसको लगता कि यह डाक्टरों की एक्स्पर्ट राय है। तो शत-प्रतिशत मानना चाहिये.यह मामला चिकित्सा से जुड़ी है तो मेडिकल एक्स्पर्ट की राय को ही लॉकडाउन का आधार बनाना चाहिए। अशफाक़ रहमान का कहना है, कि प्रधानमंत्री जी सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से निवेदन करें कि वे लोग अपने-अपने राज्य के सभी एक्स्पर्ट डाक्टर्स से इस पर मशवरा करने के बाद लॉकडाउन पर राय बनायें.भारत में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी नहीं है.हमारे डाक्टर्स विश्व में अच्छे नंबर रखते हैं। सरकारी व्यवस्था हमारे यहां ख़राब है। व्यवस्था में क्रपशन है, जिस कारण अस्पतालों में इंफ़्रास्ट्रकचर नहीं है। और है तो बेहतर नहीं है। अशफाक़ रहमान का कहना है कि मेडिकल से संबंधित मामला को प्रशासन से जोड़ कर प्रधानमंत्री महोदय फिर वही गलती न कर बैठें जो उन्होंने नोटबंदी के वक़्त की थी। बिना वित्तमंत्रालय, बिना गवर्नर से सलाह किए बेग़ैर नोटबंदी लागू कर दी, डेढ़ सौ लोगों की जान चली गयी और कई गवर्नर को त्याग पत्र देना पड़ गया। कोरोना बीमारी से कितने लोग मरेंगे, यह तो नहीं मालूम मगर भूख से लोगों की जान ज़रूर जायेगी और तब आने वाले वक़्त में नोटबंदी की तरह सिर्फ़ अफ़सोस करने के इलावा कुछ भी नहीं कर सकते.
कौशलेन्द्र पाण्डेय /पोलिटिकल एडिटर.