राकेश कुमार, मुख्य संवाददाता, कोटा में पढ़ रहे बिहारी छात्रों को लॉक डाउन में वापस बिहार लाने का मामला धीरे-धीरे तूल पकड़ता जा रहा है ।जहां वह सभी अभिभावक जिनके बच्चे पिछले 1 महीने से कोटा में फंसे हुए हैं, वे अपने बच्चों को यहां लाना चाहते हैं लेकिन उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिल रही है। यह मामला तूल तब पकड़ा जब नवादा एसडीओ द्वारा वहां के भाजपा विधायक अनिल सिंह को कोटा जाने और कोटा से अपनी बेटी को लेकर वापस बिहार आने की अनुमति दी गई जिसके आधार पर श्री सिंह अपनी पाल्या को कोटा से नवादा लेकर आये। मामला उजागर होने के बाद इसको लेकर राजनीति भी गर्म होने लगी। विरोधी दल कोटा में फंसे बच्चों को बिहार वापस नहीं लाने को लेकर सरकार पर तंज कस रहे हैं और सरकार की विफलता बता रहे हैं। तेजस्वी यादव ने तो यहां तक कह दिया कि सरकार अगर कहे तो वह सभी बच्चों को बिहार लाएंगे। वही पप्पू यादव ने भी इस पर अपनी गहरी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बसों की सुविधा मैं उपलब्ध कराउंगा। लेकिन इन राजनीतिक गतिविधियों से ऊपर उन अभिभावकों की परेशानी ज्यादा है जिनके बच्चे वहां फंसे हुए हैं। प्रशासन द्वारा विधायक को अनुमति दी जाती है लेकिन एक आम आदमी इससे वंचित रह जाता है यह मामला संवेदनशील बनता जा रहा है। इसको लेकर मुजफ्फरपुर का भी एक मामला सामने आया है जिसमें पूर्व वार्ड पार्षद विजय कुमार झा को भी मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी द्वारा 11 अप्रैल को कोटा जाने और आने की अनुमति प्रदान की गई थी और वह भी अपनी पुत्री को कोटा से वापस लाए थे। मोतिहारी पूर्वी चंपारण के भी सैकड़ों ऐसे अभिभावक हैं जो अपने बच्चों को वहां से लाना चाहते हैं। इसको लेकर मोतिहारी बार काउंसिल के प्रख्यात अधिवक्ता नरेंद्र देव, नागदहा सेवा समिति के संस्थापक अध्यक्ष मुन्ना गिरी सहित कई लोगों ने प्रयास किया कि उन्हें भी अपने बच्चों को लाने की अनुमति मिले लेकिन प्रशासन द्वारा इसकी अनुमति नहीं दी गई। इसको लेकर न्यायालय के समक्ष भी जाने की तैयारी चल रही है।हालांकि इस मामले को माननीय उच्च न्यायालय ने संज्ञान में लिया है और इसको लेकर उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल नवनीत कुमार पांडे मुख्य सचिव बिहार सरकार को लिखा है जिसमें 24 घंटे के अंदर सरकार के फैसले की जानकारी मांगी गई है कि बिहार के बाहर पढ़ रहे छात्रों को जो लोकडाउन में फंसे हुए हैं, उनको लाने के लिए बिहार सरकार क्या सोच रही है।हालांकि इस पत्र में यह भी कहा गया है कि उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता के आधार पर रखकर ही सरकार निर्णय ले। जानकारी के मुताबिक उच्च न्यायालय के समक्ष कोटा में फंसे बच्चों को लाने के लिए उच्च न्यायालय में भी कई मामले दर्ज कराने की तैयारी चल रही है। देखना यह है कि सरकार इस पर अपना क्या नीति निर्धारण करके उच्च न्यायालय को बताती है और उस आधार पर उच्च न्यायालय द्वारा किस तरह का निर्णय लिया जाता है ।