पटना, २५ अप्रैल। साहित्य केवल कथा-कहानी अथवा काव्य-सृजन ही नही है। वह सब कुछ भी साहित्य है, जो भविष्य के निर्माण में वर्तमान पीढ़ी को तैयार करने के लिए, सृजित किया जाता है। इसीलिए बड़ी कहानी अथवा बड़ी कविता वही सिद्ध हुई, जिसने समाज का मार्ग-दर्शन किया, जागरूक किया, केवल मन का रंजन ही नही किया। स्तुत्य कवि-साहित्यकार तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पूर्व उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र भी उन्हीं साहित्यकारों में थे, जो अपने विचारों की अभिव्यक्ति भर के लिए नहीं, समाज को जागृत करने के निमित्त सृजन करते थे। वह कविता हो, कथा हो या फिर दर्शन के विषय, सब में उनकी उसी महान दृष्टि की अभिव्यक्ति मिलती थी। आध्यात्मिक साहित्य पर भी उन्होंने स्तुत्य कार्य किए। ‘कैवल्य’ नाम से प्रकाशित उनकी पुस्तक, उनके व्यापक-अध्ययन और महनीय दृष्टि का स्वयं प्रमाण है। वे आध्यात्मिक विचारों से सुगठित दृढ़ संकल्पों वाले जीवट के व्यक्ति थे।
पं मिश्र के रेंटल फ़्लैट कंकड़बाग़ स्थित आवास पर आयोजित इस संक्षिप्त आयोजन में, कवि सुनील कुमार दूबे, पं मिश्र की विदुषी विधवा चंदा मिश्र, पुत्रियाँ आभा ठाकुर, आस्था और अंशु तथा अमित कुमार सिंह ने भी अपनी भावांजलि दी। सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र आदि साहित्यकारों ने भी फ़ोन कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर श्रीमती मिश्र के सौजन्य से साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में कंकड़बाग स्थित नगर निगम कार्यालय के समीप ग़रीबों के बीच खाद्य-सामग्रियों का वितरण किया गया। खाद्य-सामग्रियों में चूड़ा, गुड़, फल और बिस्किट के पैकेट सम्मिलित थे।
कौशलेन्द्र पाण्डेय.