ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश, शिवहर के रोंगटे खड़े करने वाले इस पत्र को पढ़कर आप बिहार सरकार की कोरोना संबंधित तैयारियों, बचाव और उपचार का अंदाज़ा लगा सदमे में जा सकते है। मैं पहले दिन से कह रहा हूँ बिहार भगवान भरोसे चल रहा है। थकी-हारी बिहार सरकार कोरोना के नाम पर बस खानापूर्ति कर रही है। सरकार की ना कोई समेकित योजना है ना ही दृष्टि। सरकार की ना कोई proactive approach और ना ही reactive।
बिहार में हालात बदतर होते जा रहे है। ज़रूरी टेस्टिंग नहीं हो रही है। ना ही आवश्यक संख्या में टेस्टिंग किट्स और वेंटिलेटर्स उपलब्ध है। बाहर फँसे 17 लाख बिहारियों को निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है, ना ही अप्रवासी कामगारों और छात्रों को वापस लाने की कोई मंशा है। सरकार पूर्णतः असहाय, असमर्थ और थकी हुई है। चहुँओर राशन वितरण में धाँधली की खबर है। लाभार्थियों को गला-सड़ा अनाज बाँटा जा रहा है। क़्वारांटाइन केंद्रों में कोई सुविधा नहीं, जाँच रिपोर्ट्स में लगातार गड़बड़ी उजागर हो रही है, सरकार द्वारा जारी आँकड़ों में स्थिरता और पारदर्शिता नहीं है। पुलिसकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों के पास ज़रूरी स्वास्थ्य सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं है। ज़रूरतमंदो तक मदद और राहत सामग्री नहीं पहुँच रही है। बिहार में सबसे कम टेस्ट हो रहे है। बक़ौल केंद्रीय मंत्री सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बिहार का सबसे बुरा प्रदर्शन है। बैंको और बाज़ारों में सामान्य दिनों की तरह भीड़ जमा हो रही है। लॉकडाउन का उचित पालन नहीं हो रहा।
ये सब मुख्यतः माननीय मुख्यमंत्री की विफलताएँ है। जिनका कहीं कोई ज़िक्र नहीं हो रहा है। प्रशासन के असहयोगात्मक रवैये के बावजूद ज़मीन पर मुख्य रूप से विपक्षी दलों के सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता ज़रूरतमंदो की सहायता कर रहे है। हमेशा की तरह मुख्यमंत्री और सरकार ज्वलंत समस्याओं की बजाय नफ़ा-नुक़सान के राजनीतिक हथकंडो में उलझे हुए है।
शैलेश तिवारी.