रमजान का पाक महीने में कोई अमीर और कोई गरीब नहीं रहता है। सब एक बराबर होते हैं। रोजा नफ्स की तरबियत है। इसी का मकसद है तक हासिल करना। यह लोगों के साथ हमदर्दी का महीना है। इस महीने में गरीबों को खैरात, जकात और फिरता देना चाहिए। जरूरी नहीं कि मालदार व्यक्ति ही खराब देगा कोई भी शख्स अपनी हैसियत के अनुसार खैरात दे सकता है। रमजान के महीने में खुदा की रहमत बरसती है। यह महीना बंदे को ख़ुदा के नज़दीक लाता है। इस महीने को दूसरे महीनों का सरदार बनाया गया है। और रोजा में किसी इंसान को गुस्सा नहीं करना चाहिए। अगर कोई शख्स आपसे किसी बात पर झगड़ रहा है। तो उसे जाकर कर चुप कर दो कि मेरा रोजा है। रोजा रखने वाले को सभी से मोहब्बत और हमदर्दी से बात करनी चाहिए। क्योंकि यह रोजेदार की खासियत होती है। रोजा सिर्फ़ भूखे रहने का नाम नहीं है, बल्कि गरीबों से हमदर्दी का नाम है। लोगों से मोहब्बत से पेश आने के नाम है। बुराइयों से दूर व गुनाहों से तौबा करने का महीना है। रोजेदार तब तक अपना रोजा इफ्तार नहीं कर सकता जब तक पर यह मत देख ले कि उसके पड़ोसी के घर में कुछ खाने को है भी या नहीं।
कौशलेन्द्र पाण्डेय.