आज यूपी के बुलन्दशहर में दो सन्तों की हत्या कर दी गई। पर, यह घटना मामूली खबर बन कर रह गई। सभी चैनलों ने एक लाइन में सिमटा दिया। लोग इंतज़ार करते रहे कि देश के सर्वश्रेष्ठ खोजी पत्रकार अर्णब गोस्वामी गला फाड़- फाड़कर इन हत्याओं का ठीकरा किस पार्टी के राजनेता के मत्थे फोड़ते हैं। आज किस नाम की सुपारी ले रखी है। लेकिन, आश्चर्य उसी ने नहीं किसी ने कोई शोध नहीं किया। आज इस दर्दनाक घटना से कोई धर्म खतरे में नहीं पड़ा। फ़र्ज़ कीजिये कि अगर किसी दूसरे सम्प्रदाय के किसी लंपट ने इस घटना को अंजाम दिया होता तो दृश्य क्या होता। चैनेल चिल्ला- चिल्ला कर इसे इस कदर परोसते जैसे देश पर कोई संकट आ गया हो। आज के इस दौर में घटना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उसमें शामिल जाति- धर्म महत्वपूर्ण है। आप देख लीजियेगा जिस दिन निज़ामुद्दीन तबलीगी जमात के प्रमुख साद जब सामने लाया जाएगा। सामने लाया जाएगा, मैं इसलिए बोल रहा हूँ चूंकि ऐसी बात नहीं है कि साद कहां है,प्रशासन को पता नहीं है। अगर, पता नहीं होता, तो उसके कोरोना नेगेटिव होने की खबर कहां से आ रही हैं? आपको नहीं लगता कि जब पूरे देशमें जब lockdown है, तो वह भाग कर कहां जाएगा? लेकिन, उसे तब लाया जाएगा, जब उसकी ज़रूरत होगी। और फिर आप देखेंगे देश की पत्रकारिता।
हमलोगों ने भी तकरीबन 25 साल जमकर पत्रकारिता की है। पत्रकारिता-धर्म की पूरी मर्यादा का निर्वहन पूरे कार्य काल में किया है। जब कहीं कोई दो सम्प्रदायों में हिंसक झड़प होती थी या कोई साम्प्रदायिक घटना घट जाती थी, तो रिपोर्टिंग बड़ी सावधानी से करते थे। इस बात का ख्याल रहता था कि हमारी रिपोर्ट से घटना तूल न पकड़े। हमारी रिपोर्ट से सामाजिक सद्भाव न बिगड़े। पत्रकारिता का किसी जाति- धर्म, सरकार-पार्टी से सरोकार नहीं होता। पत्रकारिता का संबंध विशुद्ध रूप से ‘ लोक ‘ के लिये है। लोकहित के लिए है। उसका उद्देश्य सामाजिक सद्भाव का निर्माण करना है न कि बिगाड़ना। आज के कुछ पत्रकारों ने अपने निहित स्वार्थके लिये इस पवित्र धर्म को कलंकित किया है।