‘कोरोना’ का नागपाश !
है अनोखा युद्ध अपूर्व यह सदृश्य-अदृश्य के मध्य।
एक पक्ष स्थूल का दूसरा सूक्ष्म अति सूक्ष्म अवश्य ।
सूक्ष्म खड़ा स्थूल के आगे दृश्य के समक्ष अदृश्य ।
विकट युद्ध यह इस धरा का कभी दिखा न ऐसा दृश्य ।
समरांगण है खुला विश्व यह, नही कोई आयुध है।
नही अस्त्र का, नही शस्त्र का परिचायक यह युद्ध है।
पर यह शत्रु विकट अदृश्य, है बहुत बड़ा अभिमानी।
मर जाऊँगा, पर न आऊँगा, सुन मानव अज्ञानी ।
कहता है वह बड़े गर्व से तुम आओ, आओगे ।
गले बाँध अपनी मृत्यु को तुम स्वयं ले जाओगे।
मायावी इस सूक्ष्म शत्रु को यों न जीता जाएगा।
संयम और अनुशासन ही इससे हमें बचाएगा।
निज गृह में स्थिर,लीन तपस्वी मात्र विजय लिखेगा।
होगा भव्य भाल धरणी पर वही सुवीर दिखेगा।
होता विजयी वही समर में आत्म-बली जो होता।
प्राण-यज्ञ में रत निरंतर जो विश्वास कभी ना खोता।।
वसुधा के इस महायुद्ध में भारत विजयी रहेगा।
इसकी गहरी सभ्यता संस्कृति, कौन शत्रु ठहरेगा?
इस महायुद्ध में मनुज का भारत नेतृत्व करेगा।
इसकी दिव्य आत्म-शक्ति से ना कोई दुष्ट बचेगा।
विश्वविजयी शिव-ध्वज हमारा फिर से लहराएगा।
निखिल विश्व इस ध्वज के नीचे चैन सदा पाएगा।
आओ मिल कर युद्ध लड़ें हम घर में संयम से रहकर ।
जीवन देंगे पुनः वसुधा को समस्त त्रास हर कर ।
हम हैं राम, कृष्ण, भीष्म औ अर्जुन गांडीवधारी।
हर संकट हर, मृत्युंजय हम, हैं युग-युग के अवतारी।
सन दो हज़ार बीस का विष यह भारत ही हरेगा।
यही ‘कोरोना’ नागपाश से जग को मुक्त करेगा।
डा अनिल सुलभ