पटना – कोरोना महामारी के चलते देश में 3 मई तक लॉकडाउन घोषित किया गया है। लॉकडाउन की वजह से सभी काम-धंधे बंद हो जाने से गरीब और मजदूर वर्गों पर रोजी रोटी का संकट मंडराने लगा है। इतना ही नहीं इस महामारी ने देश की गरीब जनता को भुखमरी की कगार पर भी लाकर खड़ा कर दिया है। रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों के आवागमन के रुकने से लोगों का बोझ उठाने वाले कुली परेशान हैं। इस दौरान गरीबों को बहुत मार पड़ रही है।गरीब लोग जो रोजी-रोटी रोज कमाते और खाते थे उनलोगों को बहुत मार पड़ रही है. उसके लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं।
लाक डाउन क्या बढ़ा खानाबदोश जिंदगी जीने वाले गरीबों और फेरी करने वालों की मुसीबत कई गुना बढ़ गई है। खुला आसामान, चिलचिलाती धूप उपर से रोजी रोटी का संकट इनके लिए एक पल गुजारना मुश्किल है। खुले आसमान के नीचे रहकर भीख मांग कर गुजर बसर करने वालों तक सरकारी योजनाएं भी नहीं पहुंच पा रही है। वहीं बाजार, मंदिर आदि बंद होने के कारण इन्हें भीख भी नहीं मिल रही। यह समाज का ऐसा तबका है जो रोज कुंआ खोदता है तब पानी पीता है।
वहीं दूसरी तरफ खानाबदोश जिंदगी जीने वाले परिवार है। जिनके पास न अपनी जमीन है और ना ही कोई ठिकाना। ये चलते जाते हैं और जहां दिन ढ़ला वहीं खुले आसमान के नीचे रात गुजार लेते है। कुछ बंजारा परिवार गांवों में टेंट लगाकर दिन काटते है। इनका पेशा ही है एक गांव से दूसरे गांव जाकर भिक्षाटन कर अपने पेट की आग बुझाना। शुरू हुए लाक डाउन के बाद जो जहां हैं वहीं फसा हुआ है।अप्रैल माह जैसे बीत रहा है सूरज की गर्मी बढ़ती जा रही है। चिलचिलाती धूप में भूखे प्यासे रहना इनके लिए मुश्किल हो गया है। अगर कहीं कुछ मिल गया तो इनके घर के चुल्हे शाम को जल जाते है नही तो पूरा परिवार भूखे ही सोने के लिए मजबूर है। सरकार ने जरूरत मंद लोगों तक को राहत पहुंचायी जा रही है लेकिन ये लोग आज भी राहत सामाग्री से अछूते है। अगर कोई गांव का या सामाजिक कार्यकर्ता की नजर इन पर पड़ जा रही है तो दो चार टाइम इनके पेट की आग शांत करने की व्यवस्था जरूर हो जा रही है। गरीबों का लाक डाउन के कारण रोजगार छिन गया है। जो जमा पूंजी थी वह भी समाप्त हो चुकी है।
बता दें कि गांवों में हर समय चौपालों पर रहती थी चहल-पहल, अब पसरा है सन्नाटा। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉक डाउन के दौरान प्रशासन ने शहरी एवं ग्रामींण इलाको में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही सख्ती दिखाते हुए बंद करा दी है। बिहार में प्रशासन अब भी सख्त है। जिनके द्वारा लॉक डाउन का पूरा पालन करवाया जा रहा है। बीमारी की भयावहता के बारे जानकारी लगने पर ग्रामींण भी सावधान है। गांव में पेड़ के नीचे चबूतरे पर लगने वाली चौपाले बंद कर दी गई। दिनभर चौपाल पर महफिल जमाने वाले बुजुर्ग अब घरों में अपने परिवारों तक सीमित हो गए हैं। बतातें हैं कि बरगद के पेड़ के नीचे चबूतरे पर गांव की चौपाल लगती थी। गांव के सभी बड़े बुजुर्ग चौपाल में शामिल होते थे। सुख दुख की बातें करते और गांव- प्रदेश व देश की चर्चा होती थी। सुबह और शाम लोग चौपाल पर इकट्ठा होते थे। लेकिन कोरोना के कारण गांव के सभी लोग अपने घरों में हैं, सुरक्षा के लिहाज से बुजुर्ग भी अब घरों में ही रह रहे हैं। बुजुर्गो के पास कोई काम तो है नहीं लेकिन इस समय पूरा परिवार घर पर है, तो सभी एक साथ घरों में ही समय काट रहे हैं। कोरोना के चलते सभी बुजुर्ग अपने अपने घरों में है। कभी कुछ जरूरी हुआ तो बच्चों के जरिए मोबाइल के सहारे एक दूसरे से बात कर लेते हैं। बाकी समय परिवार के साथ ही गुजरता है।
रामा शंकर प्रसाद