भारत सरकार ने अपने नए आदेश द्वारा राज्यों को कहा है कि वह अपने यहाँ के उन बच्चों को जो बाहर पढ़ रहे हैं, केंद्र द्वारा जारी निदेशों का अनुपालन करते हुए वापस ला सकते हैं. छात्रों के अलावा इसी आधार पर प्रवासी श्रमिकों को भी वापस बुलाने की अनुमति मिल गई है.
नीतीश जी के सामने अब कोई रास्ता नहीं बचा है। बार-बार वे लॉक डाउन का हवाला देकर भारत सरकार से इस मामले में निदेश मांग रहे थे। वह निदेश अब मिल गया है। बच्चों के साथ साथ प्रवासी श्रमिकों को भी वापस लाने का रास्ता भी भारत सरकार ने खोल दिया है. जहां तक बच्चों का और विशेष रूप से कोटा में पढ़ने वाले बच्चों को बिहार ले आने की बात है, उनकी संख्या तो सीमित है. सरकार अपने साधनों से उनको वहां से यहां ले आ सकती है. लेकिन बाहर फंसे प्रवासी श्रमिकों को जिनकी संख्या एक अनुमान के अनुसार लगभग 30 लाख है, अपने साधन से वापस ले आना क्या राज्य सरकार के लिए संभव है!
जहां तक कोरोना की महामारी से संघर्ष का सवाल है, तमाम राज्य सरकारें अबतक लगभग अपने अपने साधनों से ही इसका मुकाबला कर रही हैं. केंद्र सरकार निदेश जारी करने के अलावा किसी प्रकार की मदद राज सरकारों को नहीं कर रहा है. राज्य सरकारों के साधन अत्यंत सीमित है. विशेष रूप से जीएसटी लागू होने के बाद राज्य सरकारों के पास आय का बहुत ही सीमित स्रोत बचा है. राज्यों के आर्थिक पैकेज की मांग को केंद्र सरकार अबतक नजरअंदाज करता रहा है. यहां तक कि झारखंड जैसे सबसे पिछड़े और सबसे ज्यादा गरीब आबादी वाले राज्य के द्वारा बार-बार मांग करने के बावजूद जीएसटी का उसका हिस्सा अभी तक नहीं मिल पाया है. झारखंड के भी लगभग सात लाख श्रमिक राज्य के बाहर काम कर रहे हैं. प्रायः सभी घर वापस आना चाहते हैं. झारखंड सरकार कैसे उनको वापस लाएगी? उसके पास क्या साधन है! इसलिए ऐसा निर्देश जारी कर, यह जानते हुए भी कि राज्य सरकारों के पास साधन का अभाव है, केंद्र सरकार गरीब राज्यों को संकट में डाल रही है. बेहतर हो कि केंद्र सरकार अपने दायित्व को समझे और इस संकट में उदारता के साथ राज्य सरकारों की मदद करे. अन्यथा आगे चलकर अराजकता की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना दिखाई दे रही है.
शैलेश तिवारी,