वो देखो मजदूर जा रहे हैं …..
आंखों में जितने सपने पलते हैं
आज़ पीठ पर लादे जा रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं।
लॉकडाउन में मज़दूरी भी लॉक हुई
घर पर रहना है काम मिल रहा नहीं
अफवाहों में भूख राग गाए जा रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं।
गांव कस्बों से महानगरों में आने वाले
कामगार अपनी जड़ों को जोड़ रहे हैं
नियमों को तोड़ घरों को लौट रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं।
राहों में पांव तले सपनों को कुचलते
छोटे छोटे बच्चों का हाथ पकड़ ओह
भूखे प्यासे मजदूरों के रेले जा रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं।
भारत गांवों का देश है, सम्मान में
यही मेहनतकश दिहाड़ी मजदूर
खेतिहर श्रमिक बनने जा रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं।
फ़सल कटाई का फ़र्ज़ भी निभाना है
पर विशेष सेवा के अभाव में कर्मयोद्धा
अन्न के लिए मौत से लड़ने जा रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं।
जाना मजबूरी है तो है जिम्मेदारी भी
ये भी तो कर्मवीर कोरोना वॉरियर्स हैं
दीन हीन पैदल पथ के पार जा रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं।
आंखों में जितने सपने पलते हैं
आज़ पीठ पर लादे जा रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं
वो देखो मजदूर जा रहे हैं।
रामशंकर प्रसाद,