आज के समय में बिहार सरकार के लिए दोहरी चुनौती है, एक राज्य में कोरोना से निपटना दूसरा अप्रवासियों को वापस लाना।
अप्रवासियों को वापस लाने के मुद्दे पर एकतरफा बोलना तो जैसे पाप हो गया है। आप लाने से मना करिये और ये कहिये की जो जहां है वहां ही उसका ध्यान रखा जाए तो गाली सुनिये, क्यों की हर किसी का ध्यान रख पाना भी कठिन है, और *कुछ ऐसे भी हैं जिनको हर हाल में घर ही जाना है बस, राशन से कोई मतलब नही है
आप ये बोलिये की वापस ले आओ सबको, तो पंजाब का केस सामने है, वो कुछ सौ यात्री लाये थे, अब वहां कोरोना के केस उन्ही कुछ सौ के कारण बढ़ने लगे
बिहार सरकार से तो 20-40 लाख लोग आस लगाए बैठे हैं,इस संख्या की कोई पुष्टि नही है। कुछ लोग वीडियो बना के गरिया भी रहे हैं। फ्रस्ट्रेशन में आदमी और क्या करेगा।
अब कुछ देर के लिए भावनाओं को दबा के ठंडे दिमाग से सोचते हैं कुछ आवश्यक सवालों के उत्तर
मान लेते हैं 20 लाख अप्रवासियों को बिहार लाना है। एक बस में 60 सीट ज्यादा से ज्यादा। सोशल डिस्टनसिंग में 30 बैठेंगे( बिना संक्रमित किये लाना है तो)
एक बस में अगर 30 लोग लेकर आए तो भी कुछ 66000+ बस चाहिए (40 लाख के लिए 1 लाख 33 हजार बसें) ! उससे ज्यादा ड्राइवर और खलासी। खर्चे और समय की बात तो रहने ही दिया जाए। इतनी बसें कौन देगा? कर्नाटक के सरकारी परिवहन के पास देश में सबसे ज्यादा बसें हैं, 24000, सिर्फ जानकारी के लिए बता रहे हैं
20 लाख लोगों को कहां क्वारंटाइन करेंगे? सबको घर भी समझा के भेजते हैं तो भी उसमें से कुछ तो ढीठ निकलेगें ही, जो इधर उधर घूमते फिरेंगे
केंद्र सरकार ने कह तो दिया ले आओ सबको, 20 लाख लोगों की टेस्टिंग के लिए किट कौन दे रहा है? अब तो कोरोना बिना कोई लक्षण के भी हो रहा है
विपक्ष चाहे जितना डिंग हाँक ले कि फलना हज़ार बस देंगे,कुल मिलाकर निष्कर्ष यही निकलता है कि बिना ट्रेन के कोई उपाय नही है। ट्रेनों को दुरंतो जैसे एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन चलाया जाए, किसी को किसी बीच स्टेशन पर उतरने न दिया जाए। जितनी सीटें हो उसके आधे यात्री एक ट्रेन पर, सेक्युरिटी बढाई जाए ताकि यात्री अनुशासन में रहें। इसके बाद भी टेस्टिंग और क्वारंटाइन की समस्या रहती है।
वैसे सबसे अच्छा यही रहता कि हर राज्य की सरकार अपने यहां के अप्रवासियों का ध्यान रखे, लेकिन इतनी उदारता की आशा अब किसी से है नही, कुछ राज्य कर रहे हैं सब नही करेंगे। कुछ के लिए अप्रवासी बोझ हैं, जिनका इस्तेमाल कर वो अपनी अर्थव्यवस्था तो चला सकते हैं लेकिन संकट में उनका ध्यान नही रखना चाहते.
सतीश मिश्रा