आज रामायण सीरियल उत्तर कांड के समापन के साथ ही समाप्त हो गया। मैंने इस बार बड़े कायदे से इस सीरियल को देखा है। पूरी कथा के फिल्मांकन से लेकर गीत- संगीत, वेशभूषा, संवाद- प्रवाह, भाषा, सामाजिक परिवेश इत्यादि पर बड़े सचेत होकर नज़र डाली है। मैंने ये महसूस किया कि कुछ चीज़ें ऐसी हैं, जो हर कालखंड में विद्यमान रही हैं। कुछ सोच और व्यवहार बहुत कॉमन हैं। उसमें कोई गुणात्मक बदलाव नहीं हुआ है। रामायण का काल हम देखें तो आर्यभट्ट के अनुसार इसका समय 3137 बीसी है। नया शोध इसका काल 7323 बीसी बताता है। यानी 9343 वर्ष पहले की बात है। और, राम का जन्म 5114 बीसी में हुआ था। आईआईटी खड़गपुर और पुरातत्व विभाग विज्ञानियों ने इसे सिन्धु घाटी सभ्यता का समकालीन माना है। उनके अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता 8000 साल पुरानी थी। इसे वैज्ञानिकों ने प्रमुख रिसर्च पत्रिका में वर्ष 2016 में प्रकाशित भी किया है। इसके अलावा कई अन्य शोधार्थियों ने भी सिन्धु सभ्यता के काल को लेकर आईआईटी खड़गपुर के शोध से अपनी सहमति जताई है। हालांकि, रामायण के काल से मुझे कोई खास लेनादेना नहीं है। काल के ज़िक्र से मेरा आशय मात्र इतना है कि अब से साढ़े सात- आठ हजार सालों में हम चाहे जितना विकास कर गए हों, लेकिन स्त्री ( महिला) को लेकर सामाजिक नज़रिए में बहुत बदलाव नहीं आया है। महिला को लेकर हमारी सोच वहीं ठहरी हुई है। हर काल खंड में नारियों का आदर होता रहा है। इस पितृसत्तात्मक समाज में ज़रूरत के मुताबिक नारी की परिभाषा गढ़ी जाती रही है। यह बात स्वयं विदेह की पुत्री सीता ने कही है। प्रसंग है कि लंकाकांड के बाद राजा रामचंद्र पत्नी सीता के साथ अयोध्या लौटते हैं। लेकिन, कुछ समय बाद नगरवासियों के सीता की पवित्रता को लेकर उठाये सवाल पर त्याग करते हैं। अश्वमेध यज्ञ केबाद जब लवकुश अयोध्या पहुंचकर श्री राम को अपना पिता बताते हैं तो राजा राम उनसे प्रमाण मांगते हैं। महर्षि वाल्मीकि के साबित करने के बाद भी रामचंद्र सीता को पुनः परीक्षा देने को बोलते हैं और तब अपनी भार्या के रूप में स्वीकार करने की बात कहते हैं। यह सुनकर सीता बहुत द्रवित और दुखी होती हैं। फिर धरती फटती है और वह समा जाती हैं। इसके पहले वह कहती हैं कि इस समाज में बार- बार परीक्षा देने से आजिज आ गई हैं। वह दुख प्रकट करती हैं कि इस समाज में नारी का बड़ा अनादर है। यह धरती उनके रहने लायक नहीं है। वह रामचंद्र जी से यह भी कहती हैं कि अगले जन्मों में भी वह उन्हें ही अपना पति मांगेंगी, लेकिन हे राम यह स्थिति उत्पन्न नहीं कीजियेगा। द्वापर यानी महाभारत काल में भी स्त्री का कितना अनादर हुआ है, द्रौपदी के चीरहरण की घटना सामने है। आज भी नारी के प्रति सोच में बहुत परिवर्तन नहीं हुआ है। सार यह है कि महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव बहुत आवश्यक है। अन्यथा नारी सशक्तीकरण जैसे नारे का कोई अर्थ नहीं। और फिर, यह मान लेना होगा कि पिछले आठ हजार सालों में सत्ता करने के तरीके में बदलाव भले ही आया हो, चरित्र में परिवर्तन नहीं आया है। आज भी महिलाओं को ही अपने को पवित्र साबित करना पड़ रहा है।