पटना – लॉकडाउन वन, लॉकडाउन टू, और अब लॉकडाउन थ्री मतलब वन मोर लॉकडाउन। लेखिका सुजाता प्रसाद का कहना है कि हम होंगे कामयाब इसी मंशा से हमें आगे बढ़ना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में समय की यही मांग है। यह सच है कि हम हमेशा के लिए लॉकडाउन में नहीं रह सकते, किसी भी देश की सरकार भी अपनी हर वर्ग की जनता को लॉकडाउन में नहीं रख सकती। जनवरी के महीने में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का अपनी जनता से आह्वान था कि “जब हर भारतवासी एक क़दम चलता है तो हमारा भारतवर्ष 130 करोड़ क़दम आगे बढ़ता है। इसलिए चरैवेति चरैवेति, चलते रहो, चलते रहो का मंत्र लिए अपने प्रयास करते रहें।” फिलहाल हमें यही समझना होगा कि लॉकडाउन को बढ़ाया जाना अपेक्षित है और कुछ कुछ जरूरी भी। कहना ग़लत न होगा कि कोविड 19 को हराने के लिए हम भले ही सामाजिक दूरी बना रहे हैं, लेकिन संवेदनाओं की पृष्ठभूमि में हम सवा सौ करोड़ देशवासी एक दूसरे का हाथ पकड़े चट्टान बन कर खड़े हैं। और क्या यह भी खूबसूरत सच नहीं है कि हमने छह सप्ताह से अधिक सफलता पूर्वक लॉकडाउन कर लिया। थोड़ी बहुत परेशानियों के बावजूद यह घटना अपने आप में अभूतपूर्व ही कही जाएगी। एकता के सूत्र में बंधे देशवासियों ने इसे अपने अपने योगदान से सफल बनाया है। हम सभी एक दूसरे के लिए बधाई के पात्र हैं।
भले ही हमें पूर्णबंदी से अभी राहत नहीं मिली है, पर मिली रियायत से कुछ तो संभव हुआ है। धीरे धीरे सब संभल जाएगा इसी आत्मबल के साथ हमें मिलकर सोचना है कि सामुदायिक संक्रमण से बचा जाए। युद्ध और महामारी, अकाल और भुखमरी ने हमें कई बार ऐसे स्तर पर ला खड़ा किया है जहां आकर इसके आगे जीवन का मतलब ही परिवर्तित हो जाता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और ऐसे समय में उसकी सामाजिकता ही विमुख हो जाती है। उसके सारे क्रिया कलाप एक एक कर स्थगित होते चले जाते हैं। तब हमें ज्ञात होता है कि ये दूरियां ही हमें एहसास कराती हैं कि नजदिकियां कितनी ख़ास होती हैं।
आज की बिगड़ी हुई परिस्थितियों में इन सब बातों का अब कोई अर्थ नहीं रह जाता जब वॉशिंगटन में 24 अप्रैल को, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने एक साक्षात्कार में कहा था कि “चीन को नवंबर से ही पता था कोरोना विषाणु के बारे में। आप याद करें तो इस तरह के पहले मामले के बारे में चीन संभवतः नवंबर में ही जान गया था और मध्य दिसंबर तक तो निश्चित तौर पर। चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत विश्व में और किसी को इस बारे में बता पाने में बहुत देर की”। या यह बात भी अब किसी भी देश के नागरिकों के लिए कोई मायने नहीं रखती कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अनुसार यह दावा किया गया कि “कोरोना वायरस दुनिया में फैलने से पहले वुहान की विषाणु विज्ञान प्रयोगशाला से निकला है।” यह तो कोरोना पर जीतने के बाद की बात है।
अब हम प्रशिक्षित हो गए हैं। हम सबको अपनी तैयारी खुद ही करनी पड़ेगी। घर में लॉकडाउन होकर जितने भी सुरक्षात्मक उपाय हमने किए, जैसे सैनिटेशन, आइसोलेशन, बाहर निकलने पर मास्क और ग्लब्स को पहना, घरों में रहकर न्यूट्रिटीव खाना खाने पर ध्यान दिया, अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक रहे। विशेष परिस्थिति में क्वॉरन्टीन् भी हुए। अब घर से बाहर निकलने पर ऐसी ही जीवन शैली को अपनाते हुए हमें अपना अपना काम करना होगा। यही हमारा सुरक्षा कवच होगा और हम सभी कोरोना वॉरियर्स। हमें अपने संगठित प्रयासों से मानवता को इस कठिन चुनौती से निपटने में सहयोग करना ही होगा। “कोरोना ने दुनिया कितनी बदल दी न, क्या अब हमें ऐसे ही दूरियों में रहने की आदत डाल लेनी होगी? ऐसे सवालों के जवाब हां में ही मिलेंगे। दो गज की दूरी हमारी मजबूरी नहीं हमारी मजबूती होगी। आने वाले दिनों में सेल्फ डिस्टेंसिंग का समीकरण हमें आगे बढाएगा, क्योंकि कोरोना आज भी मौजूद है, कल भी हमारे इर्द गिर्द ही रहेगा। हमारी बुद्धिमत्ता ही कोरोना की कड़ी को तोड़ पाएगी।
रामा शंकर