पटना, १३ मई। हिन्दी समालोचना के एक अत्यंत आदरणीय व्यक्तित्व प्रो नंदकिशोर ‘नवल’ का निधन आलोचना-साहित्य के एक महान और सुदृढ़ स्तम्भ के ढह जाने के समान दुखदायी है। हिन्दी साहित्य को अपनी तीक्ष्ण प्रतिभा और व्यापक अनुशीलन से समृद्ध करने वाले नवल जी ने ‘हिन्दी आलोचना का इतिहास’, ‘आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास’, ‘बिम्ब प्रतिबिम्ब’, ‘पुनर्मूल्यांकन’ जैसे गुरु-गंभीर मौलिक ग्रंथों का सृजन कर हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में ऐतिहासिक अवदान दिया है। उनके निधन से साहित्य-जगत की मार्मिक क्षति पहुँची है।
प्रो नवल के निधन पर शोक प्रकट करते हुए, यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने दिवंगत साहित्यकार को नमन करते हुए कहा कि नवल जी आलोचना साहित्य में भारत के अंगुलीगण्य विद्वानों में परिगणित होते थे। उन्होंने हिन्दी के संत-कवियों; तुलसी दास, सूरदास, छायावाद-काल के महान कवि निराला और उत्तर-छायावाद के स्मरणीय कवि राम गोपाल शर्मा ‘रूद्र’सहित, मैथिलीशरण गुप्त, दिनकर, मुक्तिबोध, डा नामवर सिंह जैसे साहित्य-नक्षत्रों पर अत्यंत महनीय ग्रंथ लिखे। वे एक विद्वान आचार्य और संपादक भी थे। उन्होंने आलोचना साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘कसौटी’ के संपादन के साथ ‘आलोचना’ के संपादन-कार्य में भी सह-संपादक के रूप में अपनी मूल्यवान सेवाएँ दीं। उनके निधन के समाचार से आज संपूर्ण साहित्यिक समाज शोक-ग्रस्त है।
डा सुलभ से फ़ोन पर वार्ता करते हुए, सुप्रसिद्ध समालोचक और विद्वान साहित्यसेवी प्रो मंगलमूर्ति ने कहा कि, नवल जी हिन्दी साहित्य के गंभीर अध्येता थे। आलोचना के क्षेत्र में अपनी पीढ़ी में वे सर्वदा अग्र-गण्य रहे। अब हिन्दी में कोई दूसरा ‘नवल’ नही होगा। वे सदा एक सहृदय साहित्यधर्मी के रूप में संस्मृत होंगे। साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, प्रो शशि शेखर तिवारी, डा मेहता नगेंद्र सिंह, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, रवि घोष, राज कुमार प्रेमी, अरविंद कुमार सिंह तथा सुनील कुमार दूबे ने भी शोकोदगार व्यक्त किए।
स्मरणीय है कि ८३ वर्षीय साहित्यकार प्रो नवल का निधन मंगलवार के दूसरे पहर, पटना के एक निजी अस्पताल में हो गया। वे पिछले कुछ वर्षों से लगातार अस्वस्थ चल रहे थे।