कोविड-19 ने अपने प्रसार से मानव जाति के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। इसने दोनों प्रकार का नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। किसी देश के लिए अपने नागरिकों की जान बचाना पहली प्राथमिकता है। दूसरी ओर, इससे उपजे आर्थिक संकट से उबरना भी बहुत बड़ी और गंभीर चुनौती है।
कहा जा रहा है कि भारत समेत विश्व के बड़े और शक्तिशाली देश इस महामारी से निबटने में दशकों पीछे चले गए हैं। महाशक्ति अमेरिका में तो 1930 से भी बड़ी आर्थिक मंदी की आशंका जताई जा रही है। लेकिन एक बात यह भी है कि शक्तिशाली देशों के लिए अपने को साबित करने का एक बड़ा अवसर भी है। इस वायरस की जो नकेल कसेगा, वह विश्व गुरु के रूपमें प्रतिष्ठापित होगा। चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और रूस इसका वैक्सीन बनाने के प्रयास में जी- जान एक किये हुए हैं। इटली की पत्रकार और लेखिका मारिया मजेटी की बात से हम सहमत हैं कि इस वैक्सीन की खोज अंतरराष्ट्रीय संबंधों और शक्तियों का पुनर्निर्धारण करेगी। विश्व की अर्थव्यवस्था को घुटनों के बल चलने को विवश करने वाले वायरस की नकेल कसेगा, वह निश्चित रूप से दुनिया में अपनी शक्ति का परचम लहराएगा। याद करें शीत युद्ध के दौरान अपनी शक्ति की नुमाइश की होड़ में रूस ने 1957 में अंतरिक्ष में पहला उपग्रह भेजकर और 1961में यूरी गगारिन को पहली दफा अंतरिक्ष में भेजकर अमेरिका को भौंचक कर दिया था। ठीक वही होड़ वैक्सीन की खोज में महसूस की जा रही है। 1991 के विखंडन के बाद रूस ने विश्व राजनीति में अपने को काफी समेट लिया है। अब उसकी जगह चीन ने ले ली है। इसीलिए, चीन दुनिया में सबसे पहले कोरोना का वैक्सीन लाकर अमेरिका पर अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहता है। साथ ही, चीन के खिलाफ भारत समेत पश्चिमी देशों ने जो नया आर्थिक संबंध बनाने की पहल शुरू की है, शिन जिनपिंग इस वैक्सीन के जरिये इसकी भी हवा निकालना चाहते हैं। दूसरी ओर , अमरीका कोरोना महामारी से हुए नुकसान के बाद अपमानित (humiliated) महसूस कर रहा है। चूंकि, स्वास्थ्य सुविधाएं अधिक होने के बावजूद जान की बड़ी क्षति उठानी पड़ी है। इसलिए, डोनाल्ड ट्रम्प वैक्सीन लाकर दुनिया में श्रेष्ठ बनना चाहते हैं। हालांकि, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और भारत भी इस दौड़ में शामिल हैं।