रांंची (रामा शंकर) – झारखण्ड राज्य महिला संघ की प्रदेश अध्यक्ष रेणुका सिंह ने कहा कि लाँकडाउन 4.0 मे सरकार ने कुछ छूट दी है लेकिन फिर भी देहाडी मजदूरों का आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है जो रोज कमाने खानेवाले है। यह कैसी विडंबना है कि जिस मई के महीने की पहली तारीख से यानी मई दिवस से मजदूरों के हक और सम्मान के नारे बुलंद होते थे, संघर्षों की जीत के परचम लहराए जाते थे, पूरे पखवाड़े, पूरे महीने कार्यक्रमों का सिलसिला चलता रहता था, वह मई का महीना अब भविष्य में मजदूरों के लिए सबसे त्रासद महीने के रूप में मातम मनाते हुए याद किया जाएगा। भारत में मजदूरों ने सबसे ज्यादा नौकरियां गंवाईं। कोरोना से ज्यादा भूख की मार से बचने घर लौट रहे लाखों- करोड़ों मजदूरों की सड़कों पर ऐसी भगदड़, हादसे, मौतें, भूखे-प्यासे औरतें-बच्चे कभी न देखे थे। लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार प्रवासी मजदूरों पर पड़ी है। 24 मार्च को रात 8 बजे चार घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन की अचानक घोषणा के बाद से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का शहरों से अपने गांवों की ओर पलायन शुरू हो गया था। परिवहन के साधनों के अभाव में वह सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों में पैदल ही पहुंचने की कोशिश कर रहे थे।
इस चिलचिलाती धूप में कई मजदूर मर गए तथा कई प्रवासी मजदूरों की मौतेंं सड़क हादसों में हो चुकी हैं। रेणुका सिंह ने कहा कि मजदूरों का न कोई हक होता है, न सम्मान। सारे नारे, इंसाफ की बातें बेकार हैं। मजदूर होना ही बदकिस्मती है, वरना जिन सड़कों को हमने अपने हाथों से, अपने खून-पसीने से बनाया, उन्हीं सड़कों पर भूखे-प्यासे, चिलचिलाती धूप में नंगे पैर अपने बीवी-बच्चों के साथ जान बचाने वापस गांव की ओर भागना न पड़ता.”। शहर में फल, सब्जी, राशन व अन्य सामग्री की होम डिलीवरी के लिए मोबाइल वैन, ई-रिक्शा, टैक्टर, ठेला, हाथ गाड़ी के पास निर्गत किए गए। साथ ही दुकानों की सूची जारी कराई गई, जिससे लोगों को रोजगार मिल सका।कोरोना संकट में जरूरतमंदों के लिए सरकार ने खजाना खोल दिया है। लॉकडाउन में दिहाड़ी मजदूरों से काम छिना तो ठेला-खोमचा और अन्य छोटे कारोबारियों का रोजगार बंद हो गया, ऐसे में सरकार आगे आई और सभी के लिए योजनाएं शुरू करा दी गईं। इसके चलते ही जरूरतमंदों ने राहत की सांस ली। जिन्हें अभी तक किसी योजना का लाभ नहीं मिल सका है वे हलकान हैैं।