कंट्री इनसाइड न्यूज़ / वाराणसी कार्यालय से |
सह संपादक
सिया राम मिश्र
वाराणसी { काशी } में एक वर्ग ऐसा भी रहता है जिसके घर में चूल्हा, चिता की अधजली लकड़ियों के भरोसे ही दोनों वक्त जलते हैं । ये वह लोग हैं जो शिव जी की नगरी काशी में मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर चिता जलाने का कार्य करते
हैं । लाॅकडाउन के कारण इन दिनों इनके घरों के चूल्हे के लिए चिता की अधजली लकड़ियाँ भी कम पड़ने लगी हैं ।
दोनों घाटों पर मिलाकर करीब छह सौ लोगों का परिवार निवास करता है । जो इस काम से जुड़े
हैं । सामान्य दिनों में तो चिता की अधजली लकड़ियों की कोई कमी नहीं होगी है । बल्कि कई बार तो ये अपने हिस्से की अधजली लकड़ियों को चौधरी परिवार और घाट किनारे रहने वाले बाबाओं के लिए छोड़ दिया करते थे लेकिन इन दिनों एक छोटी सी अधजली लकड़ी के लिए भी आपस में झगड़े पर उतर आ रहे हैं । आपको बता दे कि जब से लाॅकडाउन हुआ है, वाराणसी मे { बनारस/काशी } बाहर के शवों का दाह-संस्कार होना बन्द हो गएँ हैं । मणिकर्णिका घाट पर तकरीबन सवा सौ और हरिश्चंद्र घाट पर चार दर्जन के आस पास शवों का दाह संस्कार सामान्य दिनों में हुआ करता है । इन दिनों मणिकर्णिका घाट पर बमुश्किल 20 से 25 और हरिश्चंद्र घाट पर पांच से सात शवों का अन्तिम संस्कार किया जा रहा है । चिताओं का ग्राफ अचानक से नीचे आ जाने से इन परिवारों के सामने चिता की अधजली लकड़ियों का संकट उत्पन्न हो गया है । गरीब रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले इन परिवारों के लिए चिता की अधजली लकड़ियां जो चूल्हा जलाने के लिए आसानी से उपलब्ध होती रही हैं । जिसके लिए इन्हें कोई भुगतान ही करना पड़ता है लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना के कारण वाराणसी में नगर से बाहर के शवों का अन्तिम संस्कार रोक दिया गया हैं । जिसके कारण चिताओं की संख्या में आई कमी ने इनके लिए मुसीबत खड़ी कर दी है ।
{ तीन हिस्सों में बंटती है। अधजली लकड़ियां }
चिताओं की अधजली लकड़ियों का बंटवारा तीन लोगों में होता
है । एक चिता से 30 फीसदी हिस्सा इन परिवारों को मिलता
है । शेष में से आधी लकड़ियां चौधरी परिवार लेता है और आधी घाट किनारे रहने वाले बाबाओं का होता है । गोवर्धन चौधरी ने बताया कि लाॅकडाउन लागू होने के बाद से अधजली लकड़ियों में से अपना हिस्सा भी शवदाह करने वालों के लिए छोड़ दिया जाता
हैं ।