अभी हमारे सामने कोरोना संक्रमण सबसे बड़ी समस्या है। सरकार का सारा ध्यान संक्रमण से बचाव और संक्रमितों के इलाज में अटका हुआ है। अब तक साढ़े चार हज़ार से अधिक लोग काल के गाल में समा चुके हैं। मौत का यह आंकड़ा कहां थमेगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। लेकिन, यह तय है कि इस बीमारी से जैसे ही हम थोड़ा हल्का होंगे, तब तक देश को एक और विकराल समस्या अपनी चपेट में ले चुकी होगी। और, उसका परिणाम कहीं इससे ज़्यादा भयावह होगा। लोग बेरोज़गार होंगे और भुखमरी की समस्या चहुंओर तारी होगी। एक सर्वे बताता है कि अब तक अमेरिका में चार करोड़ लोग बेरोज़गार हो चुके हैं। भारत में मई के अंत में बेरोजगारों की संख्या 12 करोड़ तक पहुंच जाएगी। हालांकि, लॉक डाउन खत्म होने पर दो करोड़ लोगों के रोज़गार वापस हो जाएंगे। मज़दूरों और गरीबों के सामने भुखमरी जैसी समस्या उत्पन्न होगी। आंकड़ा बताता है कि 66 फीसदी गरीबों के पास मोटामोटी हफ्ते भर का अनाज या पैसा है। फिर, उन्हें इसकी जरूरत पड़ेगी। देश के लघु और मंझोले उद्योगों में 66 फीसदी कर्मियों की सैलरी में कटौती कर सकते हैं। इस बीच कर्मियों की छंटनी भी तेजी से हुई है। मीडिया सेक्टर में भी बड़ी संख्या में नौकरी गई है। देश के एक बड़े मीडिया हाउस ने दिल्ली में अपने 150 कर्मियों की एक दिन में छुट्टी कर दी। कई हाउस ने सैलरी अप्रत्याशित रूप से कम कर दी है। लोग डर से विरोध नहीं कर रहे कि जो है, वह भी चली जायेगी।। ज़िलों में कार्यालय लगभग बंद कर दिए गए हैं। रेवेन्यू की कमी से अखबारों के पन्ने घटकर 12 पर आ गए हैं। हालांकि, यह कोई अप्रत्याशित नहीं है। अर्थशास्त्र के जानकारों ने इसकी भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी। अब सरकार इससे निबटने को कारगर योजना क्या बनाती है, सबकी नज़र इसी पर टिकी है। जिन्हें हर सवाल का जवाब मरहूम नेहरू जी से पूछना है, उनके लिए यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन, यह समस्या बड़ी है, सोचिये।।।