नई दिल्ली: संवत 2077 यानी साल 2020-21 के बीच में कोई भी चंद्रग्रहण नहीं है. इसलिए डरने की कोई जरूरत नहीं है और सूतक मानने की भी जरूरत नहीं है और 1 महीने में 3-3 ग्रहण आने की खबरों से डरना भी नहीं है.
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डिब्बावाला त्रिवेदी और दिल्ली के ज्योतिषाचार्य पंडित सकला नंद बलोदी से समझते हैं कि क्या 5 जून को ग्रहण है?
पंडित अमर डिब्बावाला त्रिवेदी कहते हैं कि जरा समझिए कि चंद्र ग्रहण कब होता है पूर्णिमा के समय सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी होती है और तीनों सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा बिल्कुल सीध में एक रेखा में होते हैं, पृथ्वी जब सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और चंद्रमा पृथ्वी की छाया में होकर गुजरता है तब चंद्र ग्रहण होता है |
पृथ्वी और चंद्रमा का मार्ग एक जैसा नहीं है वह एक दूसरे के साथ 5 अंश का कोण बनाते हैं जिससे ग्रहण का अवसर हर पूर्णिमा को नहीं होता. यदि एक सतह पर दोनों के भ्रमण पद होते हैं तो बात अलग होती है अर्थात हर पूर्णिमा पर यह घटनाक्रम होता.
पृथ्वी की छाया चंद्रमा के बिंब पर पड़ती है उस पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण होता है 5 जून की रात को पूर्णिमा पर यह स्थिति नहीं हो रही है इसलिए यह मूल ग्रहण की श्रेणी में नहीं आता इसे मांद्य ग्रहण कहना ठीक होगा. इसीलिए इसे चंद्रग्रहण के तौर पर प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए.
पंडित सकला नंद बलोदी कहते हैं कि संवत 2077 में पृथ्वी पर केवल दो सूर्यग्रहण होंगे, और कोई चंद्रग्रहण नहीं होगा जो 5 जून की रात में होने वाला है वह उपछाया ग्रहण कहा जा सकता है लेकिन धार्मिक मान्यता नहीं है.
हर एक चंद्र ग्रहण के होने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश जरूर करता है इससे चंद्र मालिन्य या अंग्रेजी में Panumbra कहा जाता है इसके बाद ही पृथ्वी की वास्तविक छाया भूमा जिसे Umbra कहा जाता है उसमें प्रवेश करता है.
जब भूमा में प्रवेश करता है तभी वास्तविक ग्रहण होता है. कई बार पूर्णिमा को चंद्रमा उपछाया में प्रवेश करके उप छाया शंकु से ही बाहर निकल जाता है, इस समय उपछाया के समय चंद्रमा का बिंब केवल धुंधला पड़ता है काला नहीं होता. हालांकि धुंधलेपन को साधारण नंगी आंखों से देख पाना संभव नहीं होता.
धर्म के लिहाज से देखें तो ज्योतिष गणना बताती है कि इस प्रकार के उपग्रह यानी उपचाया में चंद्रमा का बिंब पर मलिन छाया आने के कारण उन्हें ग्रहण की श्रेणी में नहीं रखा गया है. हर एक इस तरह की घटना घटित होने के पहले और बाद में भी चंद्रमा को पृथ्वी की उपछाया से गुजरना पड़ता है जिसे ग्रहण की संज्ञा नहीं दी जा सकती.
काजल सिंह की रिपोर्ट.