पटना, ५ जून। पुण्यश्लोक आचार्य कलक्टर सिंह ‘केसरी‘ हिन्दी काव्य–साहित्य में, ‘प्रकृति–राग‘ के अत्यंत प्रणम्य कवि माने जाते हैं। एक ऐसे कवि, जिन्होंने प्रकृति, प्रेम, करुणा और ग्राम्य–अंचल की पीड़ा को अपने काव्य का विषय बनाया। उनके गीत–छंदों में प्रकृति अपनी सुंदरम इंद्रधनुषी छटा लेकर सामने आती है। किंतु वे प्रेम और सौंदर्य का निरा ‘स्वप्न–लोक‘ लेकर नहीं आते। उनकी रचनाओं में निसर्ग की देवी अपने शाश्वत और मौलिक रूप में दृष्टि गोचर होती हैं ।
यह विचार शुक्रवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, कवि के १११वीं जयंती पर आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में, चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के पश्चात अपने उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि, जो व्यक्ति सच्चा, अच्छा तथा चरित्रवान होता है, वह कुछ न होकर भी समाज का बड़ा भला कर जाता है। और जिनमें ये गुण नहीं होते, वे चाहे कुछ भी बन जाएं, उनसे समाज का कुछ भी अच्छा नही बनता। कविता सुंदरी भी उसी का वरण करती है, जो कवि इन तीनो गुणों को आत्मसात कर काव्य की साधना करता है। ऐसे हीं कवि के कंठ में अपनी बाहों के दिव्य हार डालकर, वह अपना सारा प्रेम उड़ेलती हुई कृतार्थ होती है। अकूँठ प्रतिभा के कवि और शिक्षाविद कलक्टर सिंह केसरी ऐसे हीं सच्चे और अच्छे साहित्य–साधक थे, जिनकी असामान्य काव्य–प्रतिभा ने विज्ञ–समाज को अंतर तक आकर्षित किया था। उनकी कारयित्री प्रतिभा बहुमुखी थी। वे अंग्रेज़ी के प्राध्यापक थे, किंतु जिस मन–प्राण से उन्होंने हिन्दी की सेवा की, वह एक आलोक–स्तम्भ के रूप में हमारे सामने है। केसरी जी बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के अध्यक्ष के रूप में दिए गए अपने विशिष्ट अवदानों के लिए भी सदा याद किए जाएंगे। वे समस्तीपुर महाविद्यालय के संस्थापक–प्राचार्य थे और २० वर्षों तक इस रूप में उसकी अनवरत सेवा की। वे जब तक वहाँ रहे समस्तीपुर, साहित्यिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में चर्चित रहा। वे स्वयं में हीं एक साहित्यिक–कार्यशाला और संस्था थे।
केसरी जी को पुष्पांजलि अर्पित करनेवालों में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह, डा शालिनी पाण्डेय, गौरव प्रकाश, प्रणव कुमार समाजदार, अमित सिंह, कुमारी मेनका, अमरेन्द्र झा आदि सम्मिलित थे।
कौशलेन्द्र पाण्डेय, संवाददाता