ऒली सरकार अपनी असफलता को छिपाने के लिए भारत विरोधी नीति पर काम कर रही है ।उनके या उनके समर्थकों का कोई भी दुरगामी सोच नहीं है ।भारत से नेपाल का बेटी -रोटी का संबंध है । प्रत्येक वर्ष भारत अरबों रुपए खर्च करता है, केवल नेपाल को विशेष दर्जा देने के नाम पर । भारत सरकार नेपाल के व्यापार और लोक कल्याणकारी कामों पर भारतीय जनता से कमतर सहयोग नहीं करती है । इन सब को वह नजरअंदाज कर रहा है । चीन के साथ से यह कार्य आत्मघाती साबित होगा नेपाल का चीन से दो मामलों में ही समानता है एक उनके वामपंथी सरकार और दूसरा उनका मंगोलियन चेहरा । जो नेपाली भारत विरोधी हैं वह अपनी उपलब्धि मंगोलियन चेहरा को गिनाते हैं । चीन तो पड़ोसी देश के नाम पर केवल व्यापार करता है । चीन उस सूदखोर महाजन से भी गया गुजरा है जो गरीबों को प्रलोभन देकर उसकी पूरी जायदाद हड़प कर उसका अस्तित्व ही मिटा देता है । चीन ने जिस देश का भी मदद किया है, उनकी आर्थिक स्वतंत्रता गिरवी रख लिया है । अपने बाजार नीति को मजबूत करने के लिए ही वह बाजारी उपनिवेशि स्थापित कर रहा है । रिश्ता लेनदेन पर नहीं टिकता है ,रिश्ता एक दूसरे के साथ जीने मरने का नाम है । मुझे इस बात पर गर्व है कि केवल भारत रिश्ता निभाने के लिए ही किसी पड़ोसी या अन्य देशों से व्यवहार करता है ।
भारत को नेपाली नागरिकों को विदेशी नागरिक की श्रेणी में रखना चाहिए । करीब एक करोड़ नेपाली भारत में रोजगार करते हैं और वह जगह खाली होगा तो भारतीयों को अवसर मिलेगा ।बात रही गोरखा रेजीमेंट की तो उसे भी भंग कर भारतीयों को मौका मिलना चाहिए । जब तक भारत जैसे को तैसा व्यवहार नहीं करेगा तब तक केवल हानि ही उठाएगा ।
महात्मा गांधी सर्वमान्य नेता बनने के चक्कर में भारत को कितनी हानि पहुंचा गए हैं उसका अभी आकलन तक नहीं हुआ है ।
रामेश्वर प्रसाद निराला, वरीय संपादक.