पूज्य शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज विश्वपुरुष है :- डॉ राकेश दत्त मिश्र
आज दिनांक 19 .06.2020को भारतीय जन क्रान्ति दल के राष्ट्रीय कार्यालय में राष्ट्र जागृत दिवस का आयोजन किया गया | राष्ट्र जागृत दिवस पूज्य पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज जी के जन्मदिवस के अवसर पर मनाया गया | इस अवसर पर पार्टी के सभी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओ ने अपने घरों और सार्वजनिक स्थानों में वृक्षारोपण का कार्य भी किया | कोरोना महामारी के कारण आज कार्यालय में आयोजित एक छोटे कार्यक्रम को संवोधित करते हुए राष्ट्रीय महासचिव डॉ राकेश दत्त मिश्र ने पूज्य शंकराचार्य जी के एक कार्यक्रम में कहा था जिसे हम सब को भूलना नहीं चाहिए पूज्य श्री शंकराचार्य जी ने कहा था कि धर्मनिरपेक्ष वैसे ही होते है जैसे वस्त्र विहीन व्यक्ति | पूज्य श्री शंकराचार्य जी ने यह भी कहा था विदेशी षडयंत्रकारियों की कुटनीति देश में सफल हो रही है। क्योंकि अज्ञानतावश और दुरभिसंधिपूर्वक सनातन संस्कृति से दूर रखने का प्रयास किया गया है। हमारा शासनतंत्र विदेशी षड़यंत्रकारियों का यंत्र बनकर काम कर रहा है। आज परिस्थितियां भी ऐसी बना दी गई हैं कि यदि उनके अनुसार काम न करें तो लालबहादुर शास्त्री जैसी गति हो जाती है। यह उनकी कूटनीति है जिसको हम प्रगति मान बैठे हैं। अंग्रेजों की दुरभिसंधि पर विचार कीजिए। उनके यहां इक्कीसवीं सदी में भी व्यासपीठ और राजगद्दी दोनों सुरक्षित है और दोनों में स्वस्थ्स सामंजस्य भी है। जिसका प्रभाव है कि छल बल डंके की चोंट से वे आज पूरे विश्व पर उनका शासन है। लेकिन विडंबना है कि जिस देश में महाभारत जैसा दिव्य ग्रंथ हो वह देश विदेशी षडयंत्रों का गुलाम है। आज शासनतंत्र दोनों प्रकार की भूमिका निभा रहा है वह स्वयं चाणक्य और चन्द्रगुप्त, स्वयं ही व्यास और स्वयं ही युधिष्ठिर, स्वयं ही नारद और स्वयं ही ध्रव, स्वयं ही शंकराचार्य और स्वयं ही सुधन्वा की भूमिका निभा रहा है। जबकि श्रीरामजी ने स्वयं समर्थ होते हुए भी वशिष्ठ की भूमिका का निर्वाह नहीं किया। लेकिन आज जो राजनीतिक तंत्र है वह व्यासपीठ के पृथक अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता। शंकराचार्य जी ने कहा था कि भूदेवी पृथ्वी ने जो कि गाय के रुप में प्रस्तुत थीं, महाराजा पृथु को प्रबोधित करती हुईं कहा- राजन, वैदिक महर्षियों के द्वारा चिरपरीक्षित और प्रयुक्त उपायों को ताक पर रख कर मनःकल्पित विधा के द्वारा लौकिक उत्कर्ष भी संभव नहीं है, पारलौकिक उत्कर्ष और मोक्ष की बात तो सर्वथा सुदूर है। आजकल जो भी विकास की परियोजनाएं होती हैं वह महायन्त्रों के माध्यम से क्रियान्वित होती हैं, महायंत्रों को ताक पर रखकर विकास की कोई कल्पना नहीं की जा सकती आजकल। विकास का नमूना होता है आजकल महानगर। महायंत्रों के माध्यम से महानगर की संरचना की जा रही है यही विकास का एक प्रकार से प्रारुप है। महानगर उसे कहते हैं जहां शुद्ध वायु, प्रकाश, पवन, प्रचुर आकाश, शुद्ध मुस्कान और शुद्ध मनोभाव भी सुलभ न हो। यह विकास नहीं विनाश है। दार्शनिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक धरातल पर उर्जा के चार स्त्रोत होते हैं, पृथ्वी, पानी, प्रकाश और पवन॥ इन्हें विकास के नाम पर दूषित और विकृत किया जा रहा है। क्या महानगरों में शुद्ध मिट्टी, पानी, प्रकाश,पवन, मुस्कान या शुद्ध मनोभाव सुलभ है? यह संयुक्त परिवार के विलोप का षडयंत्र है। महायंत्रों के माध्यम से महानगर की संरचना और महानगर में संयुक्त परिवार टिक ही नहीं सकता। संयुक्त परिवार के विलोप का अर्थ होता है जहां कुलवधू सुलभ न हो, कुल देवता सुलभ न हो, कुलाचार्य सुलभ न हो, कुलदेवी सुलभ न हो, कुलगुरु सुलभ न हो। जब कुलाचार्य सुलभ नहीं, कुलदेवी सुलभ नहीं, कुलदेवता सुलभ नहीं, कुलगुरु सुलभ नहीं, कुलवधू सुलभ नहीं, कुलवर सुलभ नहीं। तो विकास का पर्यावसान पूरे विश्व में कहां आकर होता है ? मनुष्य को भोजन करने और संतान उत्पन्न करने का मात्र यंत्र बनाकर रख देना यही वर्तमान में विकास की अवधि और पराकाष्ठा है। इस पर विचार करना होगा। समय रहते अगर सहृदयतापूर्वक सत्य को सामने रखकर अगर विचार न किया तो प्रकृति जब कुपित होती है तो उसके सामने हिरण्यकश्यपु जैसे दुर्दान्त भी खड़े रह सके, सीना तानके दो क्षण टिक सकें, संभव नहीं है।उन्होंने कहा था कि एक कालावच्छेदन एक साथ अगर कोई ठहाका मारकर हंसे और गाल फुलाकर रहना चाहे तो ये संभव नहीं है। अगर ठहाका मारकर कोई हंसेगा तो गाल फुलाकर नहीं रह सकता, अगर गाल फुलाकर रहेगा तो ठहाका मारकर हंस नहीं सकता। इसी प्रकार मैं डंके की चोंट से पूरे विश्व के दृश्य को सामने रखता हुआ कहता हूं- महायंत्रों का प्रचुर आविष्कार और प्रयोग भी बढ़ता जाए और कोई दिव्य वस्तु तथा व्यक्ति भी विकृत होने से, दूषित होने से, कुपित होने से बच जाए, संभव नहीं है। पृथ्वी को धारण करने वाला यज्ञ होता है – शास्त्रसम्मत यज्ञ। यज्ञ का संपादन सात तत्वों के द्वारा होता है। गोवंश, सदाचार संयमसम्पन्न वेदज्ञ ब्राह्मण, वेद, सती, सत्यवादी, दानशील और निर्लोभ व्यक्ति। स्वतन्त्र भारत में महायन्त्रों का प्रचुर आविष्कार और प्रयोग होने के कारण इन सातों तत्वों का दु्रतगति से विलोप हो रहा है।महाभारत में दरिद्रता के जितने स्त्रोतों का उल्लेख है ये सबके सब स्त्रोत समृद्धि के आजकल माने गए हैं। अगर व्यक्ति समय रहते आज न सम्हले तो पूरा विश्व समृद्धि के नाम पर दाने-दाने के लिए मोहताज होने वाला है। क्योंकि दरिद्रता के जितने स्त्रोत हमारे वैदिक महर्र्षियों ने स्थापित किया है आज उन सबको समृद्धि का स्त्रोत माना जाता है।आज पूरे विश्व को एक चुनौती देता हूं कि पर्यावरण को दूषित, कलुषित किए बिना, महंगाई को बढ़ाए बिना अर्थात् मूल्यवृद्धि किए बिना, नास्तिकता को बढ़ाए बिना विकास करके बताइए। आज ईश्वर, धर्म और मोक्ष को विकास में बाधक मान लिया गया है ये पतन का कारण है।
राकेश दत्त मिश्रा ने बतायाकि बिहार सरकार का दुर्भाग्य है बिहार में जन्मे इतने बड़े विद्वान व्यक्ति को यहाँ वो सम्मान नहीं दे सका जो उन्हें मिलना चाहिए था , पूज्य शंकराचार्य जी विश्वपुरुष है उनकी रचनाओ पर विदेश शोध करता है परन्तु भारत के घटिया राजनेता उनकी प्रतिभा का कद्र नहीं करता |
शैलेश तिवारी.