पटना, २६ जून । डा दीनानाथ शरण हिन्दी के कुछ उन थोड़े से मनीषी साहित्यकारों में थे, जो यश की कामना से दूर, जीवन पर्यन्त साहित्य और पत्रकारिता की एकांतिक सेवा करते रहे। वे मनुष्यता और जीवन-मूल्यों के कवि और विद्वान समालोचक थे। एक सजग कवि के रूप में उन्होंने पीड़ितों को स्वर दिए तथा शोषण तथा पाखंड के विरुद्ध कविता को हथियार बनाया। यह बातें आज यहाँ, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती एवं सम्मान-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, शरण जी की ख्याति उनके द्वारा प्रणीत आलोचना-ग्रंथ ‘हिन्दी काव्य में छायावाद’ से हुई। उन्होंने नेपाल में हिन्दी के प्रचार में भी अत्यंत महनीय कार्य किए। त्रीभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू में ‘हिन्दी-विभाग’ की स्थापना का सारा श्रेय भी शरण जी को जाता है। वे ‘नेपाली साहित्य का इतिहास’ लेखन तथा नेपाली कृतियों के हिन्दी अनुवाद के लिए भी सम्मान पूर्वक स्मरण किए जाते हैं। उन्होंने साहित्य की प्रायः सभी विधाओं; कविता, कहानी, संस्मरण, उपन्यास, ललित निबंध, भेंट-वार्ता तथा शोध-निबंध में भी अधिकार पूर्वक लिखा।इस अवसर पर डा सुलभ ने, डा दीनानाथ शरण न्यास की अनुशंसा पर, परिश्रमी साहित्यकार और पत्रकार प्रभात कुमार धवन को, इस वर्ष का ‘डा दीनानाथ शरण स्मृति सम्मान’ से विभूषित किया। सम्मान-स्वरूप उन्हें ग्यारह हज़ार रूपए की सम्मान-राशि सहित वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह और सम्मान-पत्र प्रदान किया गया। इस वर्ष से डा शरण की विदुषी पत्नी और लेखिका शैलजा जयमाला के नाम से भी स्मृति-सम्मान आरंभ किया गया है। इस वर्ष का यह सम्मान विदुषी कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय को दिया गया। डा सुलभ ने उन्हें पाँच हज़ार रूपए की सम्मान राशि के साथ वंदन-वस्त्र, प्रशस्ति-पत्र तथा पुष्प-हार प्रदान कर सम्मानित किया। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार डा ध्रुब कुमार, कुमार अनुपम, डा पल्लवी विश्वास, कवि श्रीकांत व्यास, कमल नयन श्रीवास्तव, डा एच. पी सिंह, बाँके बिहारी साव, चंदा मिश्र, आलोक चोपड़ा, अनिल रश्मि, राजेश राज, अमित कुमार सिंह, निशिकांत मिश्र, सुषमा कुमारी तथा प्रमोद कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
संजय कुमार राय, शिक्षा संवाददाता. पटना