पटना, ३ जुलाई। ऐतिहासिक पात्रों को केंद्र में रख कर अनेक लोकप्रिय उपन्यास लिखने वाले तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष रह चुके आदरणीय साहित्यकार डा शत्रुघ्न प्रसाद, देश के अग्र–पांक्तेय साहित्यकार और विद्वान समालोचक थे। ‘ऐतिहासिक उपन्यासों में काल चेतना‘ (आलोचना–ग्रंथ) समेत सैकड़ों की संख्या में लिखे गए समीक्षा आलेख, उनकी विद्वता और साहित्यिक–तत्वों के अन्वेषण की उनकी चकित करने वाली प्रतिभा के परिचायक हैं। वे एक संवेदनशील कवि और पत्रकार भी थे। उनके निधन से साहित्य–जगत को भारी क्षति पहुँची है। साहित्य–सम्मेल ने अपना एक परम–स्नेही शुभेच्छु को खो दिया है।
यह बातें, गुरुवार की संध्या बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में आयोजित शोक–गोष्ठी में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने अपने शोकोदगार में कही। डा सुलभ ने कहा कि शत्रुघ्न बाबू की प्रतिबद्धता एक विचार–धारा विशेष से अवश्य थी, किंतु साहित्य सम्मेलन के व्यापक उद्देश्यों में उनके निजी विचार कभी बाधक नही बने। उन्होंने सम्मेलन के सर्व–व्यापी दृष्टिकोण की मर्यादा का दृढ़ता से पालन किया। वे राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत और भारत की उच्च सांस्कृतिक परंपरा में अकुंठ आस्था रखने वाले रचनाकार और भाष्यकार थे। एक प्राध्यापक, एक लेखक, एक समालोचक, एक पत्रकार और एक कवि के रूप में उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में अपना अमूल्य योगदान दिया, जिसके लिए हिन्दी की आनेवाली पीढ़ियाँ उन्हें सदैव हृदय में रखेंगी।
शोक प्रकट करने वालों में सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘, डा शंकर प्रसाद, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, डा मेहता नगेंद्र सिंह, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, बाबूलाल मधुकर, कृष्ण रंजन सिंह, अभिजीत कश्यप, कुमार अनुपम, डा शांति जैन, डा शालिनी पाण्डेय, पूनम आनंद, आरपी घायल, चंदा मिश्र आदि के नाम सम्मिलित हैं।