पटना, ५ जुलाई। साहित्य राजनीति के पीछे चलने वाली वस्तु नही, बल्कि राजनीति के आगे चलने वाला मशाल है, जिसके प्रकाश में राष्ट्र अपना भविष्य देखता है। हिन्दी–काव्य के आधुनिक काल का आरंभ भारतेंदु हरिश्चन्द्र से होता है, जिसने यह कहा कि जिस राष्ट्र की अपनी भाषा नही, उस राष्ट्र की जगत में कोई प्रतिष्ठा नही होती। हिन्दी काव्य के आधुनिक काल को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, पं रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, मैथली शरण गुप्त, पं सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, अयोध्या प्रसाद सिंह हरिऔंध, केदारनाथ अग्रवाल, त्रिलोचन, बाबा नागार्जून, प्रभाकर माचवे, अज्ञेय, राम विलास शर्मा आदि महान कवियों ने अपनी रचनाओं से हिन्दी का काव्य–भंडार भरा।
यह बातें रविवार की संध्या, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में प्राध्यापक डा बी के मंगलम ने कही। वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर लाइव थे। उन्होंने कहा कि, ब्रजभाषा के गर्भ से जन्मी खड़ी बोली हिन्दी के आधुनिक काल को समझना है तो इसके विभिन्न कालों के ‘मोड़बिंदु‘ के कारणों को समझना होगा।
पटल से सीधे जुड़कर, सैकड़ों विदुषियों और विद्वानों ने डा मंगलम का व्याख्यान सुना तथा अपनी प्रतिक्रिया भी दी।सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने डा मंगलम का स्वागत किया और पटल से जुडे रहे सुधी साहित्यकारों एवं साहित्य–प्रेमियों के प्रति आभार प्रकट किया।