पटना, ७ जुलाई। बहु-भाषाविद विद्वान और महान हिंदी-सेवी आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा एक महान साहित्यकार और भाषा-शास्त्री ही नही, देश के गौरव-पुरुष थे। उन्हें संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, बंगला, गुजराती, मराठी, मैथिली, भोजपुरी आदि भारतीय भाषाओं के साथ अंग्रेज़ी, रूसी, फ़्रेंच, जर्मन, ग्रीक और लैटिन भाषाओं का भी गहरा ज्ञान था। वे पटना विश्वविद्यालय और दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति, बिहार ग्रंथ अकादमी, बिहार अंतर-विश्वचिदयालय बोर्ड और बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भी अध्यक्ष थे। साहित्य की अनेक विधाओं में उन्होंने मूल्यवान सृजन किए। काव्य-शास्त्र और साहित्यालोचन पर लिखी गई उनकी पुस्तकें आज भी विद्यार्थियों के लिए आदर्श ग्रंथ है। नाटक और ललित निबंध समेत साहित्य की विभिन्न विधाओं में उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं, जो आज अत्यंत मूल्यवान धरोहर के रूप में साहित्य संसार को उपलब्ध है। वे एक अद्भुत प्रतिभा के आचार्य और पुरातन भारतीय ज्ञान के नूतन संस्करण थे। उन्हें भारतीय साहित्य और पाश्चात्य साहित्य का भी गहरा अध्ययन था
यह बातें, मंगलवार को, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में जयंती पर आयोजित पुष्पांजलि-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, आचार्य शर्मा कुछ थोड़े से महापुरुष में से एक थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, कला और संगीत जैसे सारस्वत विधाओं के उन्नयन में लगा दिया। वे सच्चे अर्थों में संस्कृति और संस्कार के पक्षधर संस्कृति-पुरुष थे। साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में भी उनकी स्तुत्य सेवाओं के लिए साहित्य-समाज उनका ऋणी है। वे सम्मेलन द्वारा संचालित बहुभाषा महाविद्यालय में कक्षाएँ भी लिया करते थे, जिसमें फ़्रेंच, जर्मन, रूसी आदि भाषाओं की पढ़ाई की जाती थी।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, कृष्ण रंजन सिंह, चंदा मिश्र, राज किशोर झा, अमित कुमार सिंह, नीरव समदर्शी, निशिकांत मिश्र, रूपक शर्मा, सोनाली कुमारी, रंजय कुमार, रूपा कुमारी आदि ने भी भावांजलि अर्पित की।