पटना, २४ जुलाई। “कैसा मंज़र है ये, कैसी मौत–सी आहट है/ दबे पाँव आ रही घबराहट है”—- “सुना है हर बात का जवाब रखते हो तुम/क्या तन्हाई का भी हिसाब रखते हो तुम?”—” समंदर का सैलाब अब उतरने लगा है/ शाम का मौसम बदलने लगा है —“। मधुर कंठ से, ‘कोरोना‘ की त्रासदी से लेकर प्रेम और ऋंगार की, मर्म–स्पर्शी पंक्तियों के साथ, देश की चर्चित और वरिष्ठ कवयित्री डा लता चौहान, शुक्रवार की संध्या ६ बजे से, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर, बेंगलुरु से लाइव रहीं।
‘कोरोना‘ की गंभीर त्रासदी को कविता का विषय बनाती हुई उन्होंने कहा कि, “कब दबोच लेगी, सुला देगी, न जाने कहाँ/ तहखानों से बने हैं गड्ढे न कोई सजावट है“। प्रेम और उसकी पीड़ा की मीठी चुभन का अहसास दिलाने वाली उनकी पंक्तियों;- “धड़कनें यूँ न मुस्कुराए कभी/ आँख में आँसू झिलमिलाए तभी/ बाद मुद्दत के तुमको देख लिया/ दिल के क़तरे भी जगमगाए तभी“– “दिल तो हमारा फिर भी चुप है कि हर घाव तुम्हारा है/ प्यार ये सारा भूल तो जाएँ / पर ये प्यार तुम्हारा है।“
एक मुक्त छंद की रचना में उन्होंने अपना ज़िक्र कुछ यों किया कि “हाँ मैं पत्ती हूँ/ मैं अंकुर की पहली चितवन/ फूट पड़ती धरती से जैसे / हो उषा की पहली किरण“। इस तरह के अनेक गीतों का सस्वर गायन करने के पश्चात अंत में उन्होंने ये दो पंक्तियाँ पढ़ी कि– “रिश्तों की ये चुभन हम ही जीतेंगे/ उम्मीदों की उमंग हम ही जीतेंगे।“
आरंभ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने सम्मेलन के फ़ेसबुक–पृष्ठ पर डा लता चौहान जी का हार्दिकता से अभिनंदन किया और पटल से जुड़ कर आनंद ले रहे सुधी दर्शकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। डा सुलभ ने बताया कि फ़ेसबुक लाइव का अगला कार्यक्रम २६ जुलाई को होगा, जिसमें हिन्दी के काव्य–साहित्य की सांगितिक प्रस्तुति सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास द्वारा की जाएगी।