पटना, २६ जुलाई। ‘बाँधों न नाव इस ठाँव बन्धु’—- ‘बूँद-बूँद बररे पानी —‘। महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और फणीश्वर नाथ रेणु के इन गीतों के साथ हिन्दी के अनेक महान कवियों की रचनाओं को स्वर-बद्ध कर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास और संगीताचार्य पं अविनय काशीनाथ ने रविवार की संध्या, सम्मेलन के फ़ेसबुक पृष्ठ से काव्य-साहित्य की मधुर सांगीतिक प्रस्तुति देकर दर्शकों का मन मोह लिया। ये दोनों चर्चित कलाकार अपने समूह के साथ संध्या ६ बजे से, सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर लाइव रहे। इन दोनों ने युगल-स्वर में निराला और रेणु समेत, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के गीत ‘माया के मोहक वन की क्या कहूँ’, मैथिली शरण गुप्त के गीत ‘सिद्धि हेतु स्वामी गए’ , गोपाल सिंह ‘नेपाली’ के गीत ‘बाबुल तुम बगिया के तरुवर’ तथा ‘तन का दीया, प्राण की बाती’, महाकवि काशीनाथ पाण्डेय के गीत ‘अब ना पाँखी बोलेगा तो जिया नही जाएगा’, डा शांति जैन के गीत ‘पिया की हवेली में तो चली रे अकेली’ , डा शहनाज फ़ातमी की ग़ज़ल ‘न तुम ही रहोगे, न रानी रहेगी’ तथा सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ के गीत ‘कैसे गीत सुनाऊँ तुमको प्रिय, उर के सुर सारे रीत गए’ का सुमधुर गायन किया। गीत-ग़ज़लों की स्वर रचना एवं हारमोनियम पर संगति पं अविनय काशीनाथ की थी। तबले पर संगत दे रहे थे युवा कलाकार आयुर्मान यास्क। सह-गायन और पार्श्व-संगीत में चर्चित बाल नृत्यंगना और गायिका काशिका पाण्डेय ने योगदान दिया। फेशबुक लाइव पर, सम्मेलन की यह चिर-स्मरणीय सांगीतिक प्रस्तुति थी, जिसमें काव्य-साहित्य को संगीत-बद्ध कर प्रस्तुत किया गया। पटल से जुड़े देश भर के डेढ़ हज़ार सुधी दर्शकों के अतिरिक्त अन्य अनेक समूहों के दर्शक-श्रोताओं ने कार्यक्रम का आनंद उठाया तथा अपनी शुभेच्छाओं से कलाकारों का उत्साह-वर्द्धन किया। आरंभ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने सम्मेलन के फ़ेसबुक-पृष्ठ पर सभी कलाकारों एवं सुधी दर्शकों का हार्दिकता से अभिनंदन किया।