पटना, २८ जुलाई। “अपने मन में ही अचानक, यूँ तरल हो जाएँगे/ क्या ख़बर थी आपसे मिलकर ग़ज़ल हो जाएँगे”— ज़िंदगी यूँ भी जली, यूँ भी जली मिलों तक/ चाँदनी चार क़दम, धूप चली मिलों तक“— “नदी बोली समुन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ/ मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ“। प्रेम, ऋंगार और कोमल भावनाओं की ऐसी ही मर्म–स्पर्शी पंक्तियों के साथ, हिन्दी–साहित्य में गीति–धारा के सुविख्यात और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों के लोकप्रिय कवि कुँवर बेचैन, मंगलवार की संध्या ग़ाज़ियाबाद से, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर लाइव रहे। समकालीन–कविता में गीत के शीर्ष कवियों में से एक कुँवर बेचैन जी को सुनना एक उपलब्धि की तरह रहा, जिनसे सकड़ों की संख्या में सुधी दर्शक सीधे जुड़े रहे।
अपनी एक लोकप्रिय चतुष्पदी पढ़ते हुए उन्होंने कहा– “पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है/ पर तू ज़रा भी साथ दे तो और बात है/ चलने को एक पाँव से भी चल रहे हैं लोग/ पर दूसरा भी साथ दे तो और बात है“। कट रहे जंगल और और चारों तरफ़ तेज़ी से फैल रहे कंकरीट के जंगल को अपने काव्य का विषय बनाते हुए उन्होंने यह दोहा पढ़ा कि – “सिसक–सिसक गेहूँ कहे, फफक–फफक के धान/ खेतों में फ़सलें नहीं, उगने लगे मकान“।
समाज में बढ़ रहे हृदय–हीन गहरे रुखेपन और भाव–सुष्कता पर कवि के मन की चिंता इन पंक्तियों में प्रकट हुई कि “सूखी मिट्टी से कोई भी मूरत न कभी बन पाएगी/ जब हवा चलेगी ये मिट्टी ख़ुद अपनी धूल उड़ाएगी/ इसलिए सजल बादल बनकर बौछार के छीटें देता चल/ यह दुनिया सूखी मिट्टी है, तू प्यार के छीटें देता चल“।
आरंभ में सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने फ़ेसबुक पटल पर आज के कवि कुँवर बेचैन का सम्मानपूर्वक अभिनंदन किया और सैकड़ों की संख्या में पटल से जुड़ कर आनंद ले रहे सुधी दर्शकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। डा सुलभ ने बताया कि फ़ेसबुक लाइव का अगला कार्यक्रम ३० जुलाई को होगा, जिसमें सुप्रसिद्ध भाषा–शास्त्री और विश्वविद्यालय सेवा आयोग ,बिहार के पूर्व अध्यक्ष प्रो शशिशेखर तिवारी लाइव रहेंगे।