बिहार के स्कूल जहां अपनी पढ़ाई को लेकर बदनाम है तो वहीं 90% स्कूल ऐसे भी हैं जहां खेल का मैदान तक नहीं है। वहीं, बिहार राज्य शिक्षा परियोजना परिषद की मानें तो यू-डायस रिपोर्ट में यह बात निकल कर आयी है।
यू-डायस के तहत 88 हजार 233 स्कूल शामिल हुए थे और इनमें सिर्फ 33 हजार 536 स्कूल में खेल का मैदान है और बाकी 54 हजार 697 स्कूलों में खेल के मैदान नहीं है।
अब खेल के मैदान ना होने के कारण खेल की कोई कक्षाएं भी नहीं होती। वहीं, दूसरी ओर शिक्षा विभाग की ओर से स्कूलों में खेल का एक पीरियड रखने का निर्देश दिया है।
एक सर्वे के अनुसार पटना स्थित बीएन कॉलेज एंड स्कूल की बात करें तो स्कूल की रूटीन में खेल की कोई कक्षा नहीं है और तो और पटना स्थित 19 से अधिक हाईस्कूल और प्लस टू-स्कूल है जो दूसरे स्कूलों में किराये के दो कमरे में चल रहे हैं।
जिस तरह स्कूलों में खेल की कक्षा होना अनिवार्य है ठीक उसी तरह शारीरिक शिक्षक होना भी अनिवार्य है और चौंका देने वाली बात यह है कि शारीरिक शिक्षक खकेल या फिर पीटी की कक्षा नहीं लेके बल्कि इनसे दूसरे विषयों की पढ़ाई करायी जाती हैं।
अगर वाकई में बिहार में खेल के कल्चर को बढ़ाना है तो इसके शारीरिक शिक्षक का होना बेहद ज़रूरी है क्योंकि यह अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन यहां तो खेल का मतलब सिर्फ मेडल जीतना है। बिहार के बच्चें हर क्षेत्र में बहुत प्रभावशाली है और अपनी जगह बनाना जानते हैं बस ज़रूरत है एक सही माध्यम की जो इन्हें ना सिर्फ मेडल हासिल करवाए बल्कि अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत करें और साथ ही देश में खेल का विकास भी करें।
प्रिया की रिपोर्ट.